तू बख़्त है कमबख़्त है, तेरे इश्क़ में रुका हुआ मेरा वक़्त है, सिफर से शुरू हुआ ये मेरा अश्क है, जो खम भी है,मुखतलफ़ है, तुझे इल्म नही, जो मेरा रश्क है, मनहुस हूँ मैं, ये तेरा तर्ज़ है, तू बख़्त है, कमबख़्त है, तेरे इश्क़ में रुका हुआ मेरा वक़्त है, तुझसे मोहब्बत आसान नही, एक मुअम्मा है सुलझाने का, मेरी हर मात में मज़ा है तुझसे जीत जाने का, यूँ तो तेरा यूँ ही हर सिलसिला है इसलिए तेरी इनायत में भी वो खला है, जिसमे मुमकिन हर तर्ज़ है, लेकिन तू बख़्त है, कमबख़्त है, तेरे इश्क़ में रुका हुआ मेरा वक़्त है, यूँ तो तेरी हर तस्कीन भी खाना-बदोश है, जिसमे इज़तीराब मेरा खुद का होश है, और मुक़्क़बिल हूँ तेरे हर हर्फ़ से मैं, जिसमे नदामत मेरा हर मर्ज है, तू बख़्त है, या कमबख़्त है, तेरे इश्क़ में रुका हुआ मेरा वक़्त है, मसाइब है तेरी मोहब्बत ये जानता हूँ, मैं तेरे इश्क़ के काबिल नही ये मानता हूँ, तेरे इश्क़ की तिशनगी में वो रग़बत है मानो तेरी हर अदावत में भी फराघत है, और तेरे इश्क़ को मुक्कममल करना मेरा फ़र्ज़ है, तू बख़्त है या कमबख़्त है, तेरे इश्क़ में रुका हुआ मेरा वक़्त है, तलबगार हूँ तेरे फलक का मैं, ऐसा नायाब तोहफा है बस ये ही मेरी क़ुरबत है, नाज है खुद पर, की तेरे तकब्बुर में भी ऐसी हसरत है, और तेरे प्यार के हर आफसुन में, मेरा हर गौहर बना दश्त है, ओर यूँ तो समझ नही आता की, तू बख़्त है, कमबख़्त है, तेरे इश्क़ में रुका हुआ मेरा हर वक़्त है, ऐ-परिंदे उड़ चल तू इश्क़ की ऐसी क़फ़स है, की मेरी रग़बत में भी तेरी मसीहत है, तू बख़्त है,कमबख़्त है, तेरे इश्क़ में रुका हुआ मेरा हर वक़्त है...