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अमावस की रात के अँधेरे की तरह , मेरे जहन-ओ-जां पर

 अमावस की रात के अँधेरे की तरह ,
मेरे जहन-ओ-जां पर ये बढ़ती जाती है।
आज तुमने शायद भुला दिया हो मुझे ,
पर सच कहूं तो मुझे आज भी तेरी याद आती है ।।

ख़ामोशी को सजा के रखता हूँ अपने लबों पर ,
ये गुस्ताख़ आँखें है जो सब बता जाती है ।
आज तुमने शायद भुला दिया हो मुझे ,
 अमावस की रात के अँधेरे की तरह ,
मेरे जहन-ओ-जां पर ये बढ़ती जाती है।
आज तुमने शायद भुला दिया हो मुझे ,
पर सच कहूं तो मुझे आज भी तेरी याद आती है ।।

ख़ामोशी को सजा के रखता हूँ अपने लबों पर ,
ये गुस्ताख़ आँखें है जो सब बता जाती है ।
आज तुमने शायद भुला दिया हो मुझे ,

अमावस की रात के अँधेरे की तरह , मेरे जहन-ओ-जां पर ये बढ़ती जाती है। आज तुमने शायद भुला दिया हो मुझे , पर सच कहूं तो मुझे आज भी तेरी याद आती है ।। ख़ामोशी को सजा के रखता हूँ अपने लबों पर , ये गुस्ताख़ आँखें है जो सब बता जाती है । आज तुमने शायद भुला दिया हो मुझे , #Poetry