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न जाने कौन से काले सायें में, खो गई हूं मैं; सब कु

न जाने कौन से काले सायें में, खो गई हूं मैं;
सब कुछ जानते हुऐ भी अंजान, हो गई हूं मैं;
किससे कहूं, कैसे कहूं,
कोई अपना नजर आता ही नहीं,
दिल है कि इस अंधेरे से निकल पाता ही नहीं।
न जाने कौन से काले सायें में, खो गई हूं मैं;
सब कुछ जानते हुऐ भी अंजान, हो गई हूं मैं;
किससे कहूं, कैसे कहूं,
कोई अपना नजर आता ही नहीं,
दिल है कि इस अंधेरे से निकल पाता ही नहीं।