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ज्वार बनकर मुरादों पर चढ़ता गया , एक किस्सा नया

ज्वार बनकर मुरादों पर चढ़ता गया ,
एक  किस्सा  नया  रोज गढ़ता गया ,
सर्द  रातों  की  बातें  भला क्या कहूँ ,
याद  आती  रही  ,  दर्द  बढ़ता  गया !
ज्वार बनकर मुरादों पर चढ़ता गया ,
एक  किस्सा  नया  रोज गढ़ता गया ,
सर्द  रातों  की  बातें  भला क्या कहूँ ,
याद  आती  रही  ,  दर्द  बढ़ता  गया !