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सबसे प्यारी केदारनाथ सिंह की एक कविता कि- "उसका हा

सबसे प्यारी केदारनाथ सिंह की एक कविता कि-
"उसका हाथ
 अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
 दुनिया को
 ‎हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए।" 
- यूपी 65 उपन्यास से। हर शहर का अपना वजूद होता है। हर शहर की अपनी आत्मा होती है। बनारस की भी अपनी आत्मा है,बल्कि यों कहिये की बनारस आत्माओं का शहर है। और शहर भी कैसा! एकदम जिंदा शहर;पता नहीं कितने ही हजार सालों से है। कहने वाले तो यहाँ तक कह गए है कि ये इतिहास से भी पुराना है।तो इसी जिंदादिली को बरकरार रखती है निखिल सचान की 'यूपी 65' नाम की यह किताब।
अगर जिंदगी एक किताब है तो निखिल सचान के अनुसार बनारस उनकी जिंदगी का सबसे ख़ूबसूरत चैप्टर है। जैसे दिल्ली की भीड़ में हर कोई खुद को खो देता है,वैसे ही बनारस की गलियों में हर कोई खुद को पा लेता है। बनारस ने लेखक को खुद से मिलाया है,प्रेयसी से मिलाया है,अज़ीज दोस्तो से मिलाया है....और यह किताब उन्हीं सब का कुल जमा जोड़ है। 
इस किताब में बनारसीपन है,खालीपन है,गांजे का नशा है,चिलम का धुआँ है,बेफिक्री-उल्लास है, भौकाली है,और थोडी-बहुत गाली भी है आशीर्वाद की तरह लेकिन उतनी ही जितनी कि आटे में नमक  की जरूरत होती है। पहलवान लस्सी की ताजगी है, भौकाली चाट का तीखापन है, पिज्जैरीया के पिज्जा सा टेस्ट है, लेमन टी की महक है, बी.एच.यू के छोले-समोसे का स्वाद है और लोंगलत्ते की मिठास भी है। गंगा की तहजीब है, गलियों की भटकन है,घाटों पे मुक्ति है,मुमुक्षु भवन में इंतजार है,शरद पूर्णिमा की रात सा निखार है, और हर हर महादेव की गूँज भी है। बी.एच.यू की कहानियाँ है,ग़ालिब के शेर है, केदारनाथ सिंह की कविताएँ है, असहिष्णुता के मुद्दे पर राजनीति है, महिला सशक्तिकरण पर जोर है, छात्रों के आंदोलन है, हॉस्टलों का गुरिल्ला युद्ध है, सेमेस्टर एक्ज़ाम्स का दबाव है और निष्काम प्रेम भी है। कानपुरिया लहजा है,इलाहाबादी अंदाज है,दिल्ली का खुलापन भी है, लेकिन बनारस आकर सब कुछ बनारसी हो जाता है। दिल की आवाज है,सोच का बदलना है, उम्मीदों का टूटना है,सपनों की हक़ीक़त है,जिंदगी का मर्म है,और मौत का भ्रम भी है।
कबाड़ी बाबा का बी.एच.यू दर्शन भी है जो कहता है कि-"....ये अंभर्सिटी(यूनिवर्सिटी) को सौ साल से ऊपर हो गया है। यहाँ से ऐसे ऐसे चउचक लड़के निकले है। एकदमे बम्पर। प्रतिभाशाली। काहे से प्रतिभा जो है न गुरु ऊ भोले बाबा का आसिरबाद है। गियानी तो दुनिया में हर कोई है। लेकिन हर किसी के सर पे औघड़ शंकर का हाथ नहीं होता।"

गंगा जी में दिखता खुद का अक्स भी है,जो बिल्कुल वैसा ही है जैसे कि तुम हो।
"गंगा जी उदास लग रही थी। शायद इसलिए क्योंकि हम लोग उदास से थे। गंगा जी सबको वैसी ही लगती है जैसे वो खुद होते है। उदास के लिए उदास। थके हारे के लिए थकी। खुशमिजाज के लिए खुश। कमले के लिए कमली।"
सबसे प्यारी केदारनाथ सिंह की एक कविता कि-
"उसका हाथ
 अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
 दुनिया को
 ‎हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए।" 
- यूपी 65 उपन्यास से। हर शहर का अपना वजूद होता है। हर शहर की अपनी आत्मा होती है। बनारस की भी अपनी आत्मा है,बल्कि यों कहिये की बनारस आत्माओं का शहर है। और शहर भी कैसा! एकदम जिंदा शहर;पता नहीं कितने ही हजार सालों से है। कहने वाले तो यहाँ तक कह गए है कि ये इतिहास से भी पुराना है।तो इसी जिंदादिली को बरकरार रखती है निखिल सचान की 'यूपी 65' नाम की यह किताब।
अगर जिंदगी एक किताब है तो निखिल सचान के अनुसार बनारस उनकी जिंदगी का सबसे ख़ूबसूरत चैप्टर है। जैसे दिल्ली की भीड़ में हर कोई खुद को खो देता है,वैसे ही बनारस की गलियों में हर कोई खुद को पा लेता है। बनारस ने लेखक को खुद से मिलाया है,प्रेयसी से मिलाया है,अज़ीज दोस्तो से मिलाया है....और यह किताब उन्हीं सब का कुल जमा जोड़ है। 
इस किताब में बनारसीपन है,खालीपन है,गांजे का नशा है,चिलम का धुआँ है,बेफिक्री-उल्लास है, भौकाली है,और थोडी-बहुत गाली भी है आशीर्वाद की तरह लेकिन उतनी ही जितनी कि आटे में नमक  की जरूरत होती है। पहलवान लस्सी की ताजगी है, भौकाली चाट का तीखापन है, पिज्जैरीया के पिज्जा सा टेस्ट है, लेमन टी की महक है, बी.एच.यू के छोले-समोसे का स्वाद है और लोंगलत्ते की मिठास भी है। गंगा की तहजीब है, गलियों की भटकन है,घाटों पे मुक्ति है,मुमुक्षु भवन में इंतजार है,शरद पूर्णिमा की रात सा निखार है, और हर हर महादेव की गूँज भी है। बी.एच.यू की कहानियाँ है,ग़ालिब के शेर है, केदारनाथ सिंह की कविताएँ है, असहिष्णुता के मुद्दे पर राजनीति है, महिला सशक्तिकरण पर जोर है, छात्रों के आंदोलन है, हॉस्टलों का गुरिल्ला युद्ध है, सेमेस्टर एक्ज़ाम्स का दबाव है और निष्काम प्रेम भी है। कानपुरिया लहजा है,इलाहाबादी अंदाज है,दिल्ली का खुलापन भी है, लेकिन बनारस आकर सब कुछ बनारसी हो जाता है। दिल की आवाज है,सोच का बदलना है, उम्मीदों का टूटना है,सपनों की हक़ीक़त है,जिंदगी का मर्म है,और मौत का भ्रम भी है।
कबाड़ी बाबा का बी.एच.यू दर्शन भी है जो कहता है कि-"....ये अंभर्सिटी(यूनिवर्सिटी) को सौ साल से ऊपर हो गया है। यहाँ से ऐसे ऐसे चउचक लड़के निकले है। एकदमे बम्पर। प्रतिभाशाली। काहे से प्रतिभा जो है न गुरु ऊ भोले बाबा का आसिरबाद है। गियानी तो दुनिया में हर कोई है। लेकिन हर किसी के सर पे औघड़ शंकर का हाथ नहीं होता।"

गंगा जी में दिखता खुद का अक्स भी है,जो बिल्कुल वैसा ही है जैसे कि तुम हो।
"गंगा जी उदास लग रही थी। शायद इसलिए क्योंकि हम लोग उदास से थे। गंगा जी सबको वैसी ही लगती है जैसे वो खुद होते है। उदास के लिए उदास। थके हारे के लिए थकी। खुशमिजाज के लिए खुश। कमले के लिए कमली।"
vikasrawal1872

Vikas Rawal

New Creator

हर शहर का अपना वजूद होता है। हर शहर की अपनी आत्मा होती है। बनारस की भी अपनी आत्मा है,बल्कि यों कहिये की बनारस आत्माओं का शहर है। और शहर भी कैसा! एकदम जिंदा शहर;पता नहीं कितने ही हजार सालों से है। कहने वाले तो यहाँ तक कह गए है कि ये इतिहास से भी पुराना है।तो इसी जिंदादिली को बरकरार रखती है निखिल सचान की 'यूपी 65' नाम की यह किताब। अगर जिंदगी एक किताब है तो निखिल सचान के अनुसार बनारस उनकी जिंदगी का सबसे ख़ूबसूरत चैप्टर है। जैसे दिल्ली की भीड़ में हर कोई खुद को खो देता है,वैसे ही बनारस की गलियों में हर कोई खुद को पा लेता है। बनारस ने लेखक को खुद से मिलाया है,प्रेयसी से मिलाया है,अज़ीज दोस्तो से मिलाया है....और यह किताब उन्हीं सब का कुल जमा जोड़ है। इस किताब में बनारसीपन है,खालीपन है,गांजे का नशा है,चिलम का धुआँ है,बेफिक्री-उल्लास है, भौकाली है,और थोडी-बहुत गाली भी है आशीर्वाद की तरह लेकिन उतनी ही जितनी कि आटे में नमक की जरूरत होती है। पहलवान लस्सी की ताजगी है, भौकाली चाट का तीखापन है, पिज्जैरीया के पिज्जा सा टेस्ट है, लेमन टी की महक है, बी.एच.यू के छोले-समोसे का स्वाद है और लोंगलत्ते की मिठास भी है। गंगा की तहजीब है, गलियों की भटकन है,घाटों पे मुक्ति है,मुमुक्षु भवन में इंतजार है,शरद पूर्णिमा की रात सा निखार है, और हर हर महादेव की गूँज भी है। बी.एच.यू की कहानियाँ है,ग़ालिब के शेर है, केदारनाथ सिंह की कविताएँ है, असहिष्णुता के मुद्दे पर राजनीति है, महिला सशक्तिकरण पर जोर है, छात्रों के आंदोलन है, हॉस्टलों का गुरिल्ला युद्ध है, सेमेस्टर एक्ज़ाम्स का दबाव है और निष्काम प्रेम भी है। कानपुरिया लहजा है,इलाहाबादी अंदाज है,दिल्ली का खुलापन भी है, लेकिन बनारस आकर सब कुछ बनारसी हो जाता है। दिल की आवाज है,सोच का बदलना है, उम्मीदों का टूटना है,सपनों की हक़ीक़त है,जिंदगी का मर्म है,और मौत का भ्रम भी है। कबाड़ी बाबा का बी.एच.यू दर्शन भी है जो कहता है कि-"....ये अंभर्सिटी(यूनिवर्सिटी) को सौ साल से ऊपर हो गया है। यहाँ से ऐसे ऐसे चउचक लड़के निकले है। एकदमे बम्पर। प्रतिभाशाली। काहे से प्रतिभा जो है न गुरु ऊ भोले बाबा का आसिरबाद है। गियानी तो दुनिया में हर कोई है। लेकिन हर किसी के सर पे औघड़ शंकर का हाथ नहीं होता।" गंगा जी में दिखता खुद का अक्स भी है,जो बिल्कुल वैसा ही है जैसे कि तुम हो। "गंगा जी उदास लग रही थी। शायद इसलिए क्योंकि हम लोग उदास से थे। गंगा जी सबको वैसी ही लगती है जैसे वो खुद होते है। उदास के लिए उदास। थके हारे के लिए थकी। खुशमिजाज के लिए खुश। कमले के लिए कमली।" #Books