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हो सकता है सती प्रथा को हमने खत्म कर दिया। लेकिन क

हो सकता है सती प्रथा को हमने खत्म कर दिया। लेकिन क्या हमने उसके पीछे छुपी उस सोच को खत्म किया है। जो लोग सती प्रथा के बारे में नही जानते उनके लिए बता देना चाहता हूँ। ये वो समय था जब औरत होना एक अभिशाप से कम नही था। वो अपनी मर्ज़ी से तो शादी कर ही नही सकती थी उसके बाद भी अगर किसी कारणवश उसका पति मर जाता था तो उसको आगे की पूरी उम्र एक सफ़ेद कपडे और घर के सबसे बेजान हिस्से में गुजारनी पड़ती थी। वो घर के  हर एक सदस्य से नही मिल सकती थी। न ही वो घर बाहर जा सकती थी। वो घर के रसोई घर में भी नही जा सकती थी। अपना खाना खुद पकाना और वो भी एक दम साधारण। इस सब के पीछे क्या मानसिकता हो सकती है? क्यों उसको सिर्फ एकेले उम्र गुजरने के लिए छोड़ दिया जाता था, भले ही उसकी उम्र 15 साल हो या 35? 
क्या इसलिए उसे जंजीरों में जकड़ा जाता था की वो किसी और मर्द से रिश्ता न बना ले या फिर उसके जीवन पर अधिकार उसके पैदा होते ही समाज का अधिकार हो गया था। जो समाज कहता था वो उसको करना है उसके अपने कोई सपने नही? अपनी कोई इच्छाये नही?
या वो घर बंधी एक गाय की तरह थी। जिसके आँगन में खड़ा कर दिया जाये वो उसकी हो जाती है। वो ही उसका दूध पीता है वो ही उसको चारा देता है। वो चाहे तो उसको मारे वो चाहे तो उसको पूजे।
ये प्रथा तो खत्म हुई लेकिन क्या मानसिकता में फर्क आया। सौ साल से भी ज्यादा का समय बीत गया इसकी समाप्ति को लेकिन हम अभी भी वही खड़े है। आज भी एक विधवा औरत को वो सम्मान वो आज़ादी नही मिल पायी जिसकी वो हक़दार है। वो समाज में अकेले अपने पैरो पर खड़ी नहीं हो सकती। पूरा समाज इस जोर कोशिश में लगा रहता है की कैसे गाय की ही तरह उसे उस खूंटे में बाँधा जाये। कैसे उसे खुद के बलबूते पर कोई काम करने से रोक जाये। क्योंकि अगर वो बाहर निकली तो किसी मर्द से प्यार कर सकती है जो की एक गुनाह है। वो अपनी शारीरिक चेतनाओं के वश में आकर किसी से सबंध बना सकती है। ये किस तरह की संस्कृति के गुन गान में हम लगे है। वैसे तो हम दुनिया भर के लिए आध्यात्मिक गुरु रहे और एक आसान सी बात नही समझ पाये कि शारीरिक संबंध की जरूरत हर शरीर को होती है। ऐसा ही प्रकर्ति ने हमे बनाया है भले ही वो मर्द हो या औरत। एक मर्द के विधवा हो जाने पर उसकी दूसरी शादी के लिए सब कोशिशों में लग जाते है यह सोच कर की अगर अकेला रहा तो कही भी अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए कूद पड़ेगा। तो अपनी विवाहित जिंदगी बचाने के लिए सब उसके हिमायती हो जाते है। लेकिन एक औरत का गुनाह यह है की अगर वो अपनी शारीरिक भूख को भी मार कर स्वतंत्र होकर कोई काम करना चाहती है। घर से बाहर निकलना चाहती है तो उसके चरित्र पर उंगलिया उठने लगती है क्योकि वह एक औरत है।
vinaykumar3349

Vinay Kumar

New Creator

हो सकता है सती प्रथा को हमने खत्म कर दिया। लेकिन क्या हमने उसके पीछे छुपी उस सोच को खत्म किया है। जो लोग सती प्रथा के बारे में नही जानते उनके लिए बता देना चाहता हूँ। ये वो समय था जब औरत होना एक अभिशाप से कम नही था। वो अपनी मर्ज़ी से तो शादी कर ही नही सकती थी उसके बाद भी अगर किसी कारणवश उसका पति मर जाता था तो उसको आगे की पूरी उम्र एक सफ़ेद कपडे और घर के सबसे बेजान हिस्से में गुजारनी पड़ती थी। वो घर के हर एक सदस्य से नही मिल सकती थी। न ही वो घर बाहर जा सकती थी। वो घर के रसोई घर में भी नही जा सकती थी। अपना खाना खुद पकाना और वो भी एक दम साधारण। इस सब के पीछे क्या मानसिकता हो सकती है? क्यों उसको सिर्फ एकेले उम्र गुजरने के लिए छोड़ दिया जाता था, भले ही उसकी उम्र 15 साल हो या 35? क्या इसलिए उसे जंजीरों में जकड़ा जाता था की वो किसी और मर्द से रिश्ता न बना ले या फिर उसके जीवन पर अधिकार उसके पैदा होते ही समाज का अधिकार हो गया था। जो समाज कहता था वो उसको करना है उसके अपने कोई सपने नही? अपनी कोई इच्छाये नही? या वो घर बंधी एक गाय की तरह थी। जिसके आँगन में खड़ा कर दिया जाये वो उसकी हो जाती है। वो ही उसका दूध पीता है वो ही उसको चारा देता है। वो चाहे तो उसको मारे वो चाहे तो उसको पूजे। ये प्रथा तो खत्म हुई लेकिन क्या मानसिकता में फर्क आया। सौ साल से भी ज्यादा का समय बीत गया इसकी समाप्ति को लेकिन हम अभी भी वही खड़े है। आज भी एक विधवा औरत को वो सम्मान वो आज़ादी नही मिल पायी जिसकी वो हक़दार है। वो समाज में अकेले अपने पैरो पर खड़ी नहीं हो सकती। पूरा समाज इस जोर कोशिश में लगा रहता है की कैसे गाय की ही तरह उसे उस खूंटे में बाँधा जाये। कैसे उसे खुद के बलबूते पर कोई काम करने से रोक जाये। क्योंकि अगर वो बाहर निकली तो किसी मर्द से प्यार कर सकती है जो की एक गुनाह है। वो अपनी शारीरिक चेतनाओं के वश में आकर किसी से सबंध बना सकती है। ये किस तरह की संस्कृति के गुन गान में हम लगे है। वैसे तो हम दुनिया भर के लिए आध्यात्मिक गुरु रहे और एक आसान सी बात नही समझ पाये कि शारीरिक संबंध की जरूरत हर शरीर को होती है। ऐसा ही प्रकर्ति ने हमे बनाया है भले ही वो मर्द हो या औरत। एक मर्द के विधवा हो जाने पर उसकी दूसरी शादी के लिए सब कोशिशों में लग जाते है यह सोच कर की अगर अकेला रहा तो कही भी अपनी शारीरिक भूख मिटाने के लिए कूद पड़ेगा। तो अपनी विवाहित जिंदगी बचाने के लिए सब उसके हिमायती हो जाते है। लेकिन एक औरत का गुनाह यह है की अगर वो अपनी शारीरिक भूख को भी मार कर स्वतंत्र होकर कोई काम करना चाहती है। घर से बाहर निकलना चाहती है तो उसके चरित्र पर उंगलिया उठने लगती है क्योकि वह एक औरत है। #Books

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