*एक लड़ाई अपनी भी*
सत्य की कटुता को व्यक्तिगत लड़ाई के माध्यम से जितना आज हम सभी का मानो एक फितरत सी बन गयी है। आज का भारत का विश्वसनीयता। जहा पुरे में फैला हुआ है। वही आज भी हम अपने ही देश की विश्वसनीयता को एक दूसरे पर अनैतिक लांछन लगा कर मिटाने में लगे हुए।
कहा गया वो सोने की चिड़िया , सब जानते है परंतु कैसे बनेगा फिर से सोने की चिड़िया ये कोई नहीं जानना चाहता । अपितु कहा जाये तो मनुष्य जाती केवल और केवल अपने औऱ अपनों में सिमट के रहना चाहता है । जबकि उन्हें भी यह ज्ञात है ,की शत्रुता भी अपने ही लोगो से है । फिर भी उनके प्रति जो एक अंधविस्वास है , उनको उजागर करने की चाहत या फिर कहे हिम्मत किसी में भी नहीं।
जहा अपने पडोसी देश बिगत कुछ वर्षों से भारत को सर्वश्रेष्ठ ऊर्जा मानते है ।वही भारत देश में ही रहने वाले कुछ नेताओ के परिवेश में रहने वाले अज्ञानी उस सत्य को झुटलाने की भी हर संभव प्रयास करते है। जहाँ तक बात अनैतिकता की आती है। लोग प्रयास करते है कि वह बने रहे।
मेरा नमन भारत के उन वीर सपूतों को है। जिन्होंने अपने सारी माया, ममता,तृष्णा को छोड कर वो हमारी देश की रक्षा के लिए सिमा में माँ भारती के चरणों में नतमस्तक खड़े हुए है। और तो और में दर्द के उन मंजरों को कैसे भूल जाऊ. की कैसे उन्होंने माँ भारती की संस्कृति, सभ्यता और देश के हर नागरिक की रक्षा के लिए हँसते हुए बलिदान हो गए। वो मार्मिक पीड़ा उनके परिजनों ने कैसे सहा होगा।
अचंबित तो तब होता हूं जब देश के नेता उनपे भी संदेह की स्थिति से देखते है ।तब शायद उनके परिजन अपनी व्यथा को किस तरह से छुपाते होंगे शायद ही कभी किसी ने सोचा होगा।
यह तो आज हम सभी को मानना होगा की भारतवर्ष में बढ़ती हुई साम्प्रदायिकता असर भारत देश में रहने वाले हर नागरिक को होने वाली है । और साम्प्रदायिकता जैसे स्थिति को लाने वाले नेता और समाज रह रहे कुरीतियो को इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला।
आज आधुनिक भारत में सोचने और समझने की छमता ईस्वर ने सभी को अलौकिक दी हुई है ।अगर फिर भी भारत बर्ष में इस तरह की घटनाएं आपको रोज सुनने और देखने को मिलेगी। #Books