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Story of Sanjay Sinha कल मैं जब दफ्तर से घर लौटा

Story of Sanjay Sinha 
 कल मैं जब दफ्तर से घर लौटा तो खाना खा कर आया था। पत्नी एक दिन के लिए बाहर गई है। बेटा हॉस्टल में है। मतलब मैं अकेला था और ऐसे में यही समझिए कि रात में बिल्कुल नहीं सो पाया। कल कमरे में बहुत गर्मी लगी। कल ही मेरे कमरे में नया एसी लगा है। मैंने एसी को ऑन किया और बिस्तर पर लेट कर कुछ पढ़ने की कोशिश करने लगा। कुछ देर में मेरा ध्यान कमरे के तामपान पर गया तो महसूस किया कि गर्मी है। मतलब एसी से ठंडी हवा नहीं आ रही। 
एसी के रिमोट पर मैंने कुछ-कुछ बटन दबाए, हवा तेज़ और धीमी होती रही, पर ठंडी नहीं हुई। 
अब मैं बिस्तर से उठ कर बैठ गया। मैंने एसी का मैनुअल निकाल कर पढ़ना शुरू कर दिया। एक-एक पन्ना पढ़ता, रिमोट पर बटन दबाता, एसी के ऊपर लगी बत्ती में मुझे कुछ-कुछ हरकत होती दिखती, पर ठंडी हवा नहीं आती। अब मेरे लिए ये बहुत बड़ा टास्क हो गया कि आखिर नया एसी ठंड़ा क्यों नहीं कर रहा? जिस दुकान से एसी खरीदा था, उससे तो अब सुबह ही बात हो सकती थी। फिर मैंने कम्यूटर ऑन करके उस कंपनी का नंबर ढूंढना शुरू किया, जिसका एसी है। काफी ढूंढने के बाद उसका नंबर मिला भी, पर वहां से भी यही पता चला कि सुबह ही बात हो सकती है। अब क्या करूं। ये तो धोखा है। नया एसी खरीदा। सोचा कि दिल्ली की गर्मी में ठंडी-ठंडी हवा खाऊंगा, पर यहां तो गर्म-गर्म हवा निकल रही है। 
कभी बिस्तर पर इधर करवट बदलता, कभी उधर। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं। मन वैसे ही दुखी था कि नया एसी ठीक से काम नहीं कर रहा है। इसी दुविधा में रात आधी से ज़्यादा बीत गई। मैंने सोचा कि कम्यूटर पर कुछ पढ़ लेता हूं, शायद नींद आ जाए। पर गर्मी में नींद कैसे आए? 
सारी रात बैठा रह गया। सुबह सोचा कि आपके लिए कोई कहानी लिखूं, पर मैं प्रेमचंद थोड़े न हूं कि खाली पेट की भूख को तकिए से दबा कर कहानी लिखूं। रात भर अकेला बैठ कर चिड़चिड़ करता रहा। 
साढ़े छह बजे पत्नी का फोन आया, “गुड मॉर्निंग, संजय।”“काहे की गुड मॉर्निंग?”“क्या हुआ? मूड क्यों ऑफ है?”“सारी रात सोया नहीं। एसी चला ही नहीं। गर्मी में बैठा रहा।”“गर्मी में क्यों बैठे रहे। पूरा घर खाली है। किसी दूसरे कमरे में सो जाते।”आंए! ये तो मेरे ध्यान में आया ही नहीं कि इतने कमरे हैं, किसी और कमरे में सो जाता। पर अपनी झेंप मिटाने के लिए मैंने कहा कि दूसरे कमरे में मैं नहीं सोता। अपना कमरा ही अपना होता है। पत्नी हंसने लगी। पूरा घर तुम्हारा है। एक कमरे में एसी नहीं चला, तो दूसरे कमरे में आराम से सो जाते। सुबह देखते कि क्या गड़बड़ी है। बेवज़ह अपनी रात खराब की। 
मैं मन ही मन बहुत झेंपा हुआ था। पर आसानी से हार मानने का मन नहीं था। मैंने कहा कि वो तो ठीक है, पर…।“पर क्या? पूरी रात गर्मी में रहे, चिड़चिड़ करते रहे। समस्या का समाधान ठंडे मन से ढूढना चाहिए। तुम जानते थे कि रात में न तो सर्विस सेंटर खुला होगा, न दुकान। जो होना था, सुबह ही होना था फिर उसके लिए इतनी माथापच्ची की ज़रूरत क्या थी?”मेरी पत्नी ने बात सौ फीसदी सही कही थी। मैंने एक-दो तर्क और दिए। मेरा कमरा…।”पत्नी ने फिर हंसते हुए कहा कि चलो तुम्हारा कमरा… तुम एसी बंद कर देते, सारी खिड़कियां खोल देते और फिर सो जाते। “पर एसी का क्या?”
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Mukesh Poonia

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Story of Sanjay Sinha कल मैं जब दफ्तर से घर लौटा तो खाना खा कर आया था। पत्नी एक दिन के लिए बाहर गई है। बेटा हॉस्टल में है। मतलब मैं अकेला था और ऐसे में यही समझिए कि रात में बिल्कुल नहीं सो पाया। कल कमरे में बहुत गर्मी लगी। कल ही मेरे कमरे में नया एसी लगा है। मैंने एसी को ऑन किया और बिस्तर पर लेट कर कुछ पढ़ने की कोशिश करने लगा। कुछ देर में मेरा ध्यान कमरे के तामपान पर गया तो महसूस किया कि गर्मी है। मतलब एसी से ठंडी हवा नहीं आ रही।  एसी के रिमोट पर मैंने कुछ-कुछ बटन दबाए, हवा तेज़ और धीमी होती रही, पर ठंडी नहीं हुई।  अब मैं बिस्तर से उठ कर बैठ गया। मैंने एसी का मैनुअल निकाल कर पढ़ना शुरू कर दिया। एक-एक पन्ना पढ़ता, रिमोट पर बटन दबाता, एसी के ऊपर लगी बत्ती में मुझे कुछ-कुछ हरकत होती दिखती, पर ठंडी हवा नहीं आती। अब मेरे लिए ये बहुत बड़ा टास्क हो गया कि आखिर नया एसी ठंड़ा क्यों नहीं कर रहा? जिस दुकान से एसी खरीदा था, उससे तो अब सुबह ही बात हो सकती थी। फिर मैंने कम्यूटर ऑन करके उस कंपनी का नंबर ढूंढना शुरू किया, जिसका एसी है। काफी ढूंढने के बाद उसका नंबर मिला भी, पर वहां से भी यही पता चला कि सुबह ही बात हो सकती है। अब क्या करूं। ये तो धोखा है। नया एसी खरीदा। सोचा कि दिल्ली की गर्मी में ठंडी-ठंडी हवा खाऊंगा, पर यहां तो गर्म-गर्म हवा निकल रही है।  कभी बिस्तर पर इधर करवट बदलता, कभी उधर। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं। मन वैसे ही दुखी था कि नया एसी ठीक से काम नहीं कर रहा है। इसी दुविधा में रात आधी से ज़्यादा बीत गई। मैंने सोचा कि कम्यूटर पर कुछ पढ़ लेता हूं, शायद नींद आ जाए। पर गर्मी में नींद कैसे आए?  सारी रात बैठा रह गया। सुबह सोचा कि आपके लिए कोई कहानी लिखूं, पर मैं प्रेमचंद थोड़े न हूं कि खाली पेट की भूख को तकिए से दबा कर कहानी लिखूं। रात भर अकेला बैठ कर चिड़चिड़ करता रहा।  साढ़े छह बजे पत्नी का फोन आया, “गुड मॉर्निंग, संजय।”“काहे की गुड मॉर्निंग?”“क्या हुआ? मूड क्यों ऑफ है?”“सारी रात सोया नहीं। एसी चला ही नहीं। गर्मी में बैठा रहा।”“गर्मी में क्यों बैठे रहे। पूरा घर खाली है। किसी दूसरे कमरे में सो जाते।”आंए! ये तो मेरे ध्यान में आया ही नहीं कि इतने कमरे हैं, किसी और कमरे में सो जाता। पर अपनी झेंप मिटाने के लिए मैंने कहा कि दूसरे कमरे में मैं नहीं सोता। अपना कमरा ही अपना होता है। पत्नी हंसने लगी। पूरा घर तुम्हारा है। एक कमरे में एसी नहीं चला, तो दूसरे कमरे में आराम से सो जाते। सुबह देखते कि क्या गड़बड़ी है। बेवज़ह अपनी रात खराब की।  मैं मन ही मन बहुत झेंपा हुआ था। पर आसानी से हार मानने का मन नहीं था। मैंने कहा कि वो तो ठीक है, पर…।“पर क्या? पूरी रात गर्मी में रहे, चिड़चिड़ करते रहे। समस्या का समाधान ठंडे मन से ढूढना चाहिए। तुम जानते थे कि रात में न तो सर्विस सेंटर खुला होगा, न दुकान। जो होना था, सुबह ही होना था फिर उसके लिए इतनी माथापच्ची की ज़रूरत क्या थी?”मेरी पत्नी ने बात सौ फीसदी सही कही थी। मैंने एक-दो तर्क और दिए। मेरा कमरा…।”पत्नी ने फिर हंसते हुए कहा कि चलो तुम्हारा कमरा… तुम एसी बंद कर देते, सारी खिड़कियां खोल देते और फिर सो जाते। “पर एसी का क्या?” #News #SanjaySinha

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