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Story of Sanjay Sinha आज जब आप ये पोस्ट पढ़ रहे

Story of Sanjay Sinha 
 आज जब आप ये पोस्ट पढ़ रहे होंगे, तब तक मैं कोलकाता के लिए उड़ चुका होऊंगा। एक तो मैं वैसे ही कम सोता हूं, पर कोलकाता जाने के लिए मैं आज सुबह और जल्दी जग गया।
मुझे कोलकाता बुलाया गया है बोलने के लिए। अपनी कहानी सुनाने के लिए। वहां माइक होगा, स्पीकर होंगे, लोग होंगे। मैं ढेरों लोगों को अपनी कहानी सुनाऊंगा। मैं सभी को ये बताऊंगा कि इस संसार में कोई भी अकेला नहीं रहना चाहता। हर किसी एक को किसी न किसी का साथ चाहिए होता है।मैं लोगों को बताऊंगा कि इस संसार मे तन्हाई से बढ़ कर कोई और सज़ा नहीं। संभव हुआ तो उन्हें वो कहानी भी सुनाऊंगा जिसे कुछ साल पहले मैंने जिया था। दिल्ली के पासपोर्ट दफ्तर में कार्यरत उस कर्मचारी की कहानी सुनाऊंगा, जिसने मेरे दोस्त का पासपोर्ट बनाने में आनाकानी की थी। मेरे दोस्त ने तत्काल कोटा में पासपोर्ट के लिए आवेदन भरा था, पर उस बाबू ने उससे उस दिन फीस नहीं ली, कहा कि कल आना, आज समय खत्म हो गया है।
मेरा दोस्त मान गया था कि कल भी दफ्तर से छुट्टी लेकर वो पासपोर्ट दफ्तर आ जाएगा। पर मैं नहीं माना था। मैंने उस बाबू से बात की। मैंने महसूस किया कि वो गहरी उदासी में जी रहा है, इसीलिए वो लोगों को उदासी बांट रहा है।मैंने भी उस बाबू से अनुरोध किया था कि आज ही फीस ले लो। दो-चार मिनट की देर से क्या फर्क पड़ता है। पर वो नहीं माना था। वो नहीं माना था, मैं भी नहीं माना था। बाबू ने काउंटर बंद कर दिया और अपना लंच बॉक्स उठा कर खाने चल पड़ा था। मैं भी उस बाबू के पीछे-पीछे कैंटीन में घुस गया था। वो अकेला टेबल पर बैठा था, मैं उसके सामने बैठ गया। जब उसने खाना शुरू किया तो मैंने उससे कहा कि एक रोटी मुझे भी खिलाओ। उसने मेरी ओर बहुत हैरान निगाहों से देखा था, पर कुछ कह नहीं पाया था। उसने यकीनन सोचा होगा कि संजय सिन्हा नामक ये आदमी तो एकदम पीछे ही पड़ गया है।हां, मैं पीछे पड़ा था। पर पासपोर्ट से अधिक चिंता मुझे उसके व्यवहार की थी। उसकी प्लेट में रोटी खाते हुए मैंने उससे पूछा था कि तुम अकेले खाना क्यों खा रहे हो?
वो चुप था। मैंने ये भी कहा था कि तुम्हारा व्यवहार अच्छा नहीं, इसीलिए तुम्हारा कोई दोस्त नहीं। तुम जिस पद पर हो, अगर तुमने अच्छा व्यवहार ऱखा होता तो न जाने कितने लोग तुम्हार दोस्त होते। मैंने आशंका जताई थी कि तुम्हारी तो अपनी पत्नी से भी नहीं बनती होगी।तब वो बाबू एकदम बिलख पड़ा था।उसने तुरंत स्वीकार कर लिया था कि उसकी पत्नी उससे तंग आकर अपने मायके चली गई है। साथ में बेटी को भी ले गई है। वो सचमुच बहुत तन्हा है।मैंने उसे राय दी थी कि तुमने पैसे बहुत कमा लिए, अब तुम रिश्ते कमाओ। मेरी बातें सुन कर वो थोड़ी देर चुप रहा था फिर उसने मुझसे कहा था कि साहब, आप काउंटर पर पहुंचिए, मैं आज ही फीस जमा कर लूंगा।उसने अपना नाम बताया था, चौधरी। मैंने अपना कार्ड उसे दिया था। संजय सिन्हा नाम लिखा था, साथ में मोबाइल नंबर।बात आई-गई खत्म हो गई थी। पर चार साल पहले उसने दिवाली के मौके पर मुझे फोन किया और कहा कि साहब, चौधरी बोल रहा हूं। पासपोर्ट वाला। उसने मुझसे कहा था कि संजय जी, उस दिन आपके जाने के बाद मैंने काफी सोचा।मुझे लगा कि सचमुच पैसे बहुत कमा लिए, पर रिश्ते नहीं कमाए।बस उस दिन के बाद मैंने पैसे कमाना छोड़ दिया। अगले दिन मैं छुट्टी लेकर ससुराल गया। पत्नी नाराज़ बैठी थी। मैं उसके सामने बैठा था। वो खाना खा रही थी, तो मैंने उससे पूछा कि क्या एक रोटी तुम्हारे प्लेट से मैं भी ले लूं।सर, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या हुआ। वो रोने लगी। फिर वो मेरे साथ घर लौट आई। सर, उस दिन के बाद से पत्नी से मेरी कभी लडाई नहीं हुई। अब बिटिया की शादी तय हो गई है। आप ज़रूर आइएगा। मेरी पत्नी आपसे नहीं मिली। पर वो मिलना चाहती है। बिटिया को आपका आशीर्वाद चाहिए..।मैं ये कहानी आप लोगों को पहले भी सुना चुका हूं।मैं ये कहानी फिर कोलकाता में लोगों को सुनाऊंगा। मुझे ये कहानी सुनानी ही है। मेरी मां इस संसार में नहीं है। मेरे पिता भी इस संसार में नहीं हैं। मेरा भाई भी मुझे छोड़ कर चला गया है। इसलिए मैं ठीक से कह नहीं सकता कि आजकल लोगों के परिवार में कितने लोग रहते हैं और कैसे रहते हैं। पर सुना है कि अब लोग मोबाइल जेब में रखते हैं, एक दूसरे को संदेश भेजते हैं। इस भ्रम में रहते हैं कि वो लोगों के संपर्क में हैं। पर मैंने सुना है कि लोग दरअसल अब लोगों से बहुत दूर हो गए हैं। हर आदमी तन्हा हो गया है।मैं कोलकाता जाकर पूछूंगा कि क्या ये सच है? क्या सचमुच अब बच्चे मां की छाती से चिपक कर सोते हुए कहानियां नहीं सुनते? क्या लोग अब बुजुर्ग मां-बाप के साथ नहीं रहते? क्या पैसे की चाहत में रिश्तों ने अपना वजूद खो दिया है? क्या पति-पत्नी बात-बात पर झगड़ बैठते हैं? क्या बच्चे मां-बाप की नहीं सुनते?अगर ऐसा है तब तो मैं कोलकाता में अपनी कई कहानियां सुनाऊंगा। मैं लोगों को बताऊंगा कि पैसा चाहे जितना कमा लें, खुशी रिश्ते कमाने से ही मिलेगी।
पुन:- आज शाम आप कोलकाता में मुझसे मिलने आइए। समय शाम के पांच बजे और स्थान ऑर्डिनेंस क्लब।

Sanjay Sinha
mukeshpoonia0051

Mukesh Poonia

Silver Star
Super Creator
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Story of Sanjay Sinha आज जब आप ये पोस्ट पढ़ रहे होंगे, तब तक मैं कोलकाता के लिए उड़ चुका होऊंगा। एक तो मैं वैसे ही कम सोता हूं, पर कोलकाता जाने के लिए मैं आज सुबह और जल्दी जग गया। मुझे कोलकाता बुलाया गया है बोलने के लिए। अपनी कहानी सुनाने के लिए। वहां माइक होगा, स्पीकर होंगे, लोग होंगे। मैं ढेरों लोगों को अपनी कहानी सुनाऊंगा। मैं सभी को ये बताऊंगा कि इस संसार में कोई भी अकेला नहीं रहना चाहता। हर किसी एक को किसी न किसी का साथ चाहिए होता है।मैं लोगों को बताऊंगा कि इस संसार मे तन्हाई से बढ़ कर कोई और सज़ा नहीं। संभव हुआ तो उन्हें वो कहानी भी सुनाऊंगा जिसे कुछ साल पहले मैंने जिया था। दिल्ली के पासपोर्ट दफ्तर में कार्यरत उस कर्मचारी की कहानी सुनाऊंगा, जिसने मेरे दोस्त का पासपोर्ट बनाने में आनाकानी की थी। मेरे दोस्त ने तत्काल कोटा में पासपोर्ट के लिए आवेदन भरा था, पर उस बाबू ने उससे उस दिन फीस नहीं ली, कहा कि कल आना, आज समय खत्म हो गया है। मेरा दोस्त मान गया था कि कल भी दफ्तर से छुट्टी लेकर वो पासपोर्ट दफ्तर आ जाएगा। पर मैं नहीं माना था। मैंने उस बाबू से बात की। मैंने महसूस किया कि वो गहरी उदासी में जी रहा है, इसीलिए वो लोगों को उदासी बांट रहा है।मैंने भी उस बाबू से अनुरोध किया था कि आज ही फीस ले लो। दो-चार मिनट की देर से क्या फर्क पड़ता है। पर वो नहीं माना था। वो नहीं माना था, मैं भी नहीं माना था। बाबू ने काउंटर बंद कर दिया और अपना लंच बॉक्स उठा कर खाने चल पड़ा था। मैं भी उस बाबू के पीछे-पीछे कैंटीन में घुस गया था। वो अकेला टेबल पर बैठा था, मैं उसके सामने बैठ गया। जब उसने खाना शुरू किया तो मैंने उससे कहा कि एक रोटी मुझे भी खिलाओ। उसने मेरी ओर बहुत हैरान निगाहों से देखा था, पर कुछ कह नहीं पाया था। उसने यकीनन सोचा होगा कि संजय सिन्हा नामक ये आदमी तो एकदम पीछे ही पड़ गया है।हां, मैं पीछे पड़ा था। पर पासपोर्ट से अधिक चिंता मुझे उसके व्यवहार की थी। उसकी प्लेट में रोटी खाते हुए मैंने उससे पूछा था कि तुम अकेले खाना क्यों खा रहे हो? वो चुप था। मैंने ये भी कहा था कि तुम्हारा व्यवहार अच्छा नहीं, इसीलिए तुम्हारा कोई दोस्त नहीं। तुम जिस पद पर हो, अगर तुमने अच्छा व्यवहार ऱखा होता तो न जाने कितने लोग तुम्हार दोस्त होते। मैंने आशंका जताई थी कि तुम्हारी तो अपनी पत्नी से भी नहीं बनती होगी।तब वो बाबू एकदम बिलख पड़ा था।उसने तुरंत स्वीकार कर लिया था कि उसकी पत्नी उससे तंग आकर अपने मायके चली गई है। साथ में बेटी को भी ले गई है। वो सचमुच बहुत तन्हा है।मैंने उसे राय दी थी कि तुमने पैसे बहुत कमा लिए, अब तुम रिश्ते कमाओ। मेरी बातें सुन कर वो थोड़ी देर चुप रहा था फिर उसने मुझसे कहा था कि साहब, आप काउंटर पर पहुंचिए, मैं आज ही फीस जमा कर लूंगा।उसने अपना नाम बताया था, चौधरी। मैंने अपना कार्ड उसे दिया था। संजय सिन्हा नाम लिखा था, साथ में मोबाइल नंबर।बात आई-गई खत्म हो गई थी। पर चार साल पहले उसने दिवाली के मौके पर मुझे फोन किया और कहा कि साहब, चौधरी बोल रहा हूं। पासपोर्ट वाला। उसने मुझसे कहा था कि संजय जी, उस दिन आपके जाने के बाद मैंने काफी सोचा।मुझे लगा कि सचमुच पैसे बहुत कमा लिए, पर रिश्ते नहीं कमाए।बस उस दिन के बाद मैंने पैसे कमाना छोड़ दिया। अगले दिन मैं छुट्टी लेकर ससुराल गया। पत्नी नाराज़ बैठी थी। मैं उसके सामने बैठा था। वो खाना खा रही थी, तो मैंने उससे पूछा कि क्या एक रोटी तुम्हारे प्लेट से मैं भी ले लूं।सर, उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये क्या हुआ। वो रोने लगी। फिर वो मेरे साथ घर लौट आई। सर, उस दिन के बाद से पत्नी से मेरी कभी लडाई नहीं हुई। अब बिटिया की शादी तय हो गई है। आप ज़रूर आइएगा। मेरी पत्नी आपसे नहीं मिली। पर वो मिलना चाहती है। बिटिया को आपका आशीर्वाद चाहिए..।मैं ये कहानी आप लोगों को पहले भी सुना चुका हूं।मैं ये कहानी फिर कोलकाता में लोगों को सुनाऊंगा। मुझे ये कहानी सुनानी ही है। मेरी मां इस संसार में नहीं है। मेरे पिता भी इस संसार में नहीं हैं। मेरा भाई भी मुझे छोड़ कर चला गया है। इसलिए मैं ठीक से कह नहीं सकता कि आजकल लोगों के परिवार में कितने लोग रहते हैं और कैसे रहते हैं। पर सुना है कि अब लोग मोबाइल जेब में रखते हैं, एक दूसरे को संदेश भेजते हैं। इस भ्रम में रहते हैं कि वो लोगों के संपर्क में हैं। पर मैंने सुना है कि लोग दरअसल अब लोगों से बहुत दूर हो गए हैं। हर आदमी तन्हा हो गया है।मैं कोलकाता जाकर पूछूंगा कि क्या ये सच है? क्या सचमुच अब बच्चे मां की छाती से चिपक कर सोते हुए कहानियां नहीं सुनते? क्या लोग अब बुजुर्ग मां-बाप के साथ नहीं रहते? क्या पैसे की चाहत में रिश्तों ने अपना वजूद खो दिया है? क्या पति-पत्नी बात-बात पर झगड़ बैठते हैं? क्या बच्चे मां-बाप की नहीं सुनते?अगर ऐसा है तब तो मैं कोलकाता में अपनी कई कहानियां सुनाऊंगा। मैं लोगों को बताऊंगा कि पैसा चाहे जितना कमा लें, खुशी रिश्ते कमाने से ही मिलेगी। पुन:- आज शाम आप कोलकाता में मुझसे मिलने आइए। समय शाम के पांच बजे और स्थान ऑर्डिनेंस क्लब। Sanjay Sinha #News

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