आस्तीनों के सापों के माथे भाता कभी चंदन नही। मां भारती की स्तुति से बड़ा कोई गान, कोई वंदन नहीं।। सोच गर गुलाम है तो मंजूर कभी कोई अभिनंदन नहीं। मौत मंजूर मुझको, मंजूर कलम पर कोई बंधन नहीं।। विनोद विद्रोही