ज़िक्र तेरा जो हमसे क्यों सब कह बैठे बेव़फा हम भी तुझे क्यों व़फा कह बैठे जो छुपे थे न जाने कब से ये आंसू निकले तो उन्है हम क्यों खुशी कह बैठे