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आज तुम्हारे एक ख्याल ने दिल के दरवाज़े पर बरसों बाद

आज तुम्हारे एक ख्याल ने दिल के दरवाज़े पर बरसों बाद दस्तक क्या दी, सब बिखर गया। तुम ना हो कर भी कितना कहीं ना कहीं किसी कोने में मेरे दिमाग मे जिंदा हो, कितनी बार खुद को मार कर जिंदा किया है सिर्फ इसी उम्मीद में की तुम्हें खत्म कर एक नई शुरुआत करु मगर ग़लतफ़हमी तब भी थी और आज भी। साँस लेना भी दुशवार है। तुम ही बता दो, ये कैसी सज़ा है।
आज तुम्हारे एक ख्याल ने दिल के दरवाज़े पर बरसों बाद दस्तक क्या दी, सब बिखर गया। तुम ना हो कर भी कितना कहीं ना कहीं किसी कोने में मेरे दिमाग मे जिंदा हो, कितनी बार खुद को मार कर जिंदा किया है सिर्फ इसी उम्मीद में की तुम्हें खत्म कर एक नई शुरुआत करु मगर ग़लतफ़हमी तब भी थी और आज भी। साँस लेना भी दुशवार है। तुम ही बता दो, ये कैसी सज़ा है।