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किसी स्याह रात के शुरआती शाम सी, सुबह के पहले के ढ

किसी स्याह रात के शुरआती शाम सी,
सुबह के पहले के ढलते अंधकार सी
खेतों में फैली पूनम की चाँदनी सी,
तो कभी"साकी" के प्याले में बची आखिरी "शराब"सी
खुले "आँगन" में बीती  गर्मी की रात सी,
कभी जो कह नहीं पाया किसी से उस "अनकही" बात सी,
किसी पुरानी याद सी,"स्टेशन"पे छूटते एक साथ सी,
बेवजह तेज होते साँस सी,
          मेरे बेतरतीब नज़्मो में जो एक शक्ल उभर आई है,
      ये तेरी ही परछाई है।
हर हार के बाद थमती उम्मीद सी,जीत के बाद कायम होती विश्वास सी,
सूखे के समय बरसात के आस सी,
"नशे" में होंठो पे आयी "बात" सी
एक सुखद भास् सी,
लिए मलयज के सुगंध  की एक बयार सी,
इन शब्दों में जो एक तस्वीर उभर आई है
ये तेरी परछाई है।
   पूनम के मुस्काते चाँद सी,स्वर्ग के पारिजात सी
सुबह के ख़्वाब सी,
         "हर्फ़ों" में घुलते अहसास सी 
      जो एक "कलाकृति" उभर आई है 
"हाँ" ये तेरी ही परछाई है
किसी स्याह रात के शुरआती शाम सी,
सुबह के पहले के ढलते अंधकार सी
खेतों में फैली पूनम की चाँदनी सी,
तो कभी"साकी" के प्याले में बची आखिरी "शराब"सी
खुले "आँगन" में बीती  गर्मी की रात सी,
कभी जो कह नहीं पाया किसी से उस "अनकही" बात सी,
किसी पुरानी याद सी,"स्टेशन"पे छूटते एक साथ सी,
बेवजह तेज होते साँस सी,
          मेरे बेतरतीब नज़्मो में जो एक शक्ल उभर आई है,
      ये तेरी ही परछाई है।
हर हार के बाद थमती उम्मीद सी,जीत के बाद कायम होती विश्वास सी,
सूखे के समय बरसात के आस सी,
"नशे" में होंठो पे आयी "बात" सी
एक सुखद भास् सी,
लिए मलयज के सुगंध  की एक बयार सी,
इन शब्दों में जो एक तस्वीर उभर आई है
ये तेरी परछाई है।
   पूनम के मुस्काते चाँद सी,स्वर्ग के पारिजात सी
सुबह के ख़्वाब सी,
         "हर्फ़ों" में घुलते अहसास सी 
      जो एक "कलाकृति" उभर आई है 
"हाँ" ये तेरी ही परछाई है