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Anil Siwach

।।श्री हरिः।। 43 - किसकी वर्षगांठ? कन्हाई आज इतना क्यों व्यस्त है, यह बात गोप कुमारों की समझ में नहीं आयी। आज गोचारण से लौटने के पर्याप्त पूर्व से यह गुञ्जा, पिच्छ और पता नहीं क्या-क्या एकत्र करने लगा था। सायंकाल तो गोपकुमार शृंगार करते नहीं। शृंगार तो वन में आते ही हो जाता है। अब घर लौटने पर तो सब शृंगार उतारकर मैया स्नान करवेगी। तब इस सब संग्रह का प्रयोजन? 'तू यह सब इस समय क्यों एकत्र कर रहा है? इसका क्या करेगा?' श्रीदाम ने पूछ लिया। 'करूंगा - मुझे चाहिये!' कन्हाई सीधे उत्तर नहीं देता तो को

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।।श्री हरिः।।
43 - किसकी वर्षगांठ?

कन्हाई आज इतना क्यों व्यस्त है, यह बात गोप कुमारों की समझ में नहीं आयी। आज गोचारण से लौटने के पर्याप्त पूर्व से यह गुञ्जा, पिच्छ और पता नहीं क्या-क्या एकत्र करने लगा था। सायंकाल तो गोपकुमार शृंगार करते नहीं। शृंगार तो वन में आते ही हो जाता है। अब घर लौटने पर तो सब शृंगार उतारकर मैया स्नान करवेगी। तब इस सब संग्रह का प्रयोजन?

'तू यह सब इस समय क्यों एकत्र कर रहा है? इसका क्या करेगा?' श्रीदाम ने पूछ लिया।

'करूंगा - मुझे चाहिये!' कन्हाई सीधे उत्तर नहीं देता तो को

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 28 - स्पर्धा कन्हाई अतिशय सुकुमार है और सखाओं में सबसे अनेक विषयों में तो तोक से भी दुर्बल है, किन्तु हठी इतना है कि जो धुन चढेगी पूरा किये किये बिना मानेगा। सब खेलों में आगे कूदेगा भले वह इसके लिए बहुत कठिन हो। अब आज दाऊ ने लम्बी छलाँग का प्रस्ताव किया तो सबसे पहिले पटुका, वनमाला उतार कर दूर रखकर प्रस्तुत हो गया! अलकें तो इसकी सुबल ने समेट कर पीछे बॉंधी। 'कृष्ण! तू रहने दे!' भद्र ने कहा - 'तू यहां एक ओर बैठकर देख कि कौन कहाँ तक कूदता है। हममें-से किसी को निर्णय करने वाला भी

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|| श्री हरि: || 
28 - स्पर्धा

कन्हाई अतिशय सुकुमार है और सखाओं में सबसे अनेक विषयों में तो तोक से भी दुर्बल है, किन्तु हठी इतना है कि जो धुन चढेगी पूरा किये किये बिना मानेगा। सब खेलों में आगे कूदेगा भले वह इसके लिए बहुत कठिन हो।

अब आज दाऊ ने लम्बी छलाँग का प्रस्ताव किया तो सबसे पहिले पटुका, वनमाला उतार कर दूर रखकर प्रस्तुत हो गया! अलकें तो इसकी सुबल ने समेट कर पीछे बॉंधी।

'कृष्ण! तू रहने दे!' भद्र ने कहा - 'तू यहां एक ओर बैठकर देख कि कौन कहाँ तक कूदता है। हममें-से किसी को निर्णय करने वाला भी

Anil Siwach

।।श्री हरी।। 13 - स्नान 'दादा! स्नान करेगा तू?' कन्हाई अग्रज के समीप दौड़ा-दौड़ा आया और वाम पार्श्व में खड़े होकर दोनों भुजाएँ भाई के कण्ठ में डालकर कन्धे पर सिर रखकर बड़े स्नेहपूर्वक पूछ रहा है। 'स्नान?' दाऊ ने तनिक सिर घुमाया। वे इस पूछने का अर्थ जानते हैं। श्यामसुंदर स्नान करना चाहता है। शैशव से यह जल पाते ही उसमें लोट-पोट होने में आनन्द मनाता रहा है।स्नान योग्य जल हो तो स्नान करने को इसका मन मचल पड़ता है। लेकिन मैया ने बार-बार मना किया है कहीं यमुना अथवा सरोवर में स्नान करने को। सखाओं को म #Books

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।।श्री हरी।।
13 - स्नान

'दादा! स्नान करेगा तू?' कन्हाई अग्रज के समीप दौड़ा-दौड़ा आया और वाम पार्श्व में खड़े होकर दोनों भुजाएँ भाई के कण्ठ में डालकर कन्धे पर सिर रखकर बड़े स्नेहपूर्वक पूछ रहा है।

'स्नान?' दाऊ ने तनिक सिर घुमाया। वे इस पूछने का अर्थ जानते हैं। श्यामसुंदर स्नान करना चाहता है। शैशव से यह जल पाते ही उसमें लोट-पोट होने में आनन्द मनाता रहा है।स्नान योग्य जल हो तो स्नान करने को इसका मन मचल पड़ता है। लेकिन मैया ने बार-बार मना किया है कहीं यमुना अथवा सरोवर में स्नान करने को। सखाओं को म

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|| श्री हरि: || 5 - भोला 'कनूँ ! खूब मधुर, बहुत स्वादिष्ट पायस है।' भद्र अपने सम्मुख केशर पड़ा सुरभित पायस से परिपूर्ण पात्र लिये बैठा है। 'तू खायेगा?' 'खाऊँगा!' कोई स्नेह से बुलावे तो व्रजराजकुमार भोग लगाने न आ बैठे ऐसा नहीं हो सकता। अब श्यामसुन्दर भद्रके समीप आकर बैठ गया है। श्याम और भद्र दोनों बालक हैं। दोनों लगभग समान वय के हैं। इन्दीवर सुन्दर कन्हाई और गोधुम गौर भद्रसैन। दोनों की कटि में पीली कछनी है, किन्तु कृष्ण के कन्धे पर पीताम्बर पटुका है, भद्र का पटुका नीला है। दोनों के पैरों में #Books

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|| श्री हरि: || 
5 - भोला

'कनूँ ! खूब मधुर, बहुत स्वादिष्ट पायस है।' भद्र अपने सम्मुख केशर पड़ा सुरभित पायस से परिपूर्ण पात्र लिये बैठा है। 'तू खायेगा?'

'खाऊँगा!' कोई स्नेह से बुलावे तो व्रजराजकुमार भोग लगाने न आ बैठे ऐसा नहीं हो सकता। अब श्यामसुन्दर भद्रके समीप आकर बैठ गया है।

श्याम और भद्र दोनों बालक हैं। दोनों लगभग समान वय के हैं। इन्दीवर सुन्दर कन्हाई और गोधुम गौर भद्रसैन। दोनों की कटि में पीली कछनी है, किन्तु कृष्ण के कन्धे पर पीताम्बर पटुका है, भद्र का पटुका नीला है। दोनों के पैरों में

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 65 - आँधी आयी 'हम्मा।' गायों ने कान खड़े का दिए हैं। चरना बंद करके वे स्वयं एकत्र हो गयी हैं झुण्ड की झुण्ड और अब लगता है कि गोष्ट को भागने वाली ही हैं । 'कनूं! देख आँधी आ रही है।' कपि इधर-उधर छिपने लगे हैं। पक्षी उड़ते हैं आकुल-से और चीलें ऊपर -खूंब ऊपर मण्डल बनाकर चक्कर काटने लगी हैं। गोपकूमार ठीक ही तो कहते हैं कि आँधी आ रही है। दिशाएं धूमिल हो रही हैं और पश्चिमी आकाश में कपिश रंग की घटा-सी घेरे आ रही है, किंतु कन्हाई तो नाच रहा है। यह दोनों हाथ पूरे फैलाकर गोलमोल घूम रहा है। #Books

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|| श्री हरि: ||
65 - आँधी आयी

'हम्मा।' गायों ने कान खड़े का दिए हैं। चरना बंद करके वे स्वयं एकत्र हो गयी हैं झुण्ड की झुण्ड और अब लगता है कि गोष्ट को भागने वाली ही हैं ।

'कनूं! देख आँधी आ रही है।' कपि इधर-उधर छिपने लगे हैं। पक्षी उड़ते हैं आकुल-से और चीलें ऊपर -खूंब ऊपर मण्डल बनाकर चक्कर काटने लगी हैं। गोपकूमार ठीक ही तो कहते हैं कि आँधी आ रही है। दिशाएं धूमिल हो रही हैं और पश्चिमी आकाश में कपिश रंग की घटा-सी घेरे आ रही है, किंतु कन्हाई तो नाच रहा है। यह दोनों हाथ पूरे फैलाकर गोलमोल घूम रहा है।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || 62 - भोला श्याम 'कनू तेरा पटुका कहाँ गया? ' दाऊ ने देखा कि उसके छोटे भाई के कंधे पर पीतपट नहीं है। यह कन्हाई की कोई नयी बात नहीं। एक मुरलिका तो इसे प्राणों से प्यारी है। उसे फेट में खोंसे रहेगा, हाथ में लिये रहेगा, कांख में दबाये रहेगा। सोते समय भी उसे पास में सम्हाल कर रखेगा। किंतु दूसरी सब वस्तुएं-पटुका, वेत्र, श्रृंग, माला आदि जहां चाहे वहां डाल देगा और भूल जायगा। दाऊ को ही इसकी वस्तुओं का ध्यान रखना पडता है। 'हूं!' श्याम ने अपने वक्ष की ओर देखा। इसे अब तक यही पता नहीं कि प #Books

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|| श्री हरि: ||
62 - भोला श्याम

'कनू तेरा पटुका कहाँ गया? ' दाऊ ने देखा कि उसके छोटे भाई के कंधे पर पीतपट नहीं है। यह कन्हाई की कोई नयी बात नहीं।

एक मुरलिका तो इसे प्राणों से प्यारी है। उसे फेट में खोंसे रहेगा, हाथ में लिये रहेगा, कांख में दबाये रहेगा। सोते समय भी उसे पास में सम्हाल कर रखेगा। किंतु दूसरी सब वस्तुएं-पटुका, वेत्र, श्रृंग, माला आदि जहां चाहे वहां डाल देगा और भूल जायगा। दाऊ को ही इसकी वस्तुओं का ध्यान रखना पडता है।

'हूं!' श्याम ने अपने वक्ष की ओर देखा। इसे अब तक यही पता नहीं कि प


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