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Anil Siwach

|| श्री हरि: || 25 - शयन 'दादा!' कन्हाई नींद में ही अपने हाथ से अपने बड़े भाई को टटोल लेता है। दाऊ के हाथ इसके शरीर से हटे और यह चौंका। यह करवट लेगा और आंखें बंद किये ही पुकारेगा और टटोलेगा। दाऊ अपने छोटे भाई को निद्रा में भी अपने हाथ से मानों सम्हाले रहता है। यदि करवट लेने में वह हाथ हट जाय, मैया के थपकी देने पर भी श्याम दादा को ढूंढेगा। श्याम के नीलकमल के समान सुंदर शरीर पर दाऊ का प्रफुल्ल पद्मकर या फिर दाऊ के देह पर मोहन का नन्हा - सा अरुण सरोजपाणी - दोनों भाई एक - दूसरे को छूते ही सो सकते

|| श्री हरि: || 25 - शयन 'दादा!' कन्हाई नींद में ही अपने हाथ से अपने बड़े भाई को टटोल लेता है। दाऊ के हाथ इसके शरीर से हटे और यह चौंका। यह करवट लेगा और आंखें बंद किये ही पुकारेगा और टटोलेगा। दाऊ अपने छोटे भाई को निद्रा में भी अपने हाथ से मानों सम्हाले रहता है। यदि करवट लेने में वह हाथ हट जाय, मैया के थपकी देने पर भी श्याम दादा को ढूंढेगा। श्याम के नीलकमल के समान सुंदर शरीर पर दाऊ का प्रफुल्ल पद्मकर या फिर दाऊ के देह पर मोहन का नन्हा - सा अरुण सरोजपाणी - दोनों भाई एक - दूसरे को छूते ही सो सकते

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || 78 - ऐश्वर्य 'दादा।' तोक दौड़ता हुआ आया, किंतु सम्बोधन करके फिर हिचक गया। दाऊ के पास जाकर धीरे से कहा उसने-'दादा । आंधी आ रही है। तू उसे मना कर दे। कनूं सो रहा है न।' 'कहीं आंधी भी कोई मनुष्य या गाय के मना करने से मानेगी।' गोपकुमारों ने कूछ कहा नहीं, पर प्रायः सबकें अधरों पर हास्य आ गया। यह तोक अभी बहुत छोटा जो है-समझता नहीं कुछ। 'तू मेरा नाम लेकर उसे मना कर आ। कह देना कि अभी आयी तो अच्छा नहीं होगा।' यह दाऊ घूंसा दिखा रहा है। बाप रे। इसके घूंसे से आधी तो क्या, आधी का बाप भी मान #Books

|| श्री हरि: || 78 - ऐश्वर्य 'दादा।' तोक दौड़ता हुआ आया, किंतु सम्बोधन करके फिर हिचक गया। दाऊ के पास जाकर धीरे से कहा उसने-'दादा । आंधी आ रही है। तू उसे मना कर दे। कनूं सो रहा है न।' 'कहीं आंधी भी कोई मनुष्य या गाय के मना करने से मानेगी।' गोपकुमारों ने कूछ कहा नहीं, पर प्रायः सबकें अधरों पर हास्य आ गया। यह तोक अभी बहुत छोटा जो है-समझता नहीं कुछ। 'तू मेरा नाम लेकर उसे मना कर आ। कह देना कि अभी आयी तो अच्छा नहीं होगा।' यह दाऊ घूंसा दिखा रहा है। बाप रे। इसके घूंसे से आधी तो क्या, आधी का बाप भी मान #Books

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || 76 - डांट पड़ी 'दादा, कनूं धूप में नाच रहा है। देख न, रेत कितनी तप रही है।' भद्र ने दाऊ से कहा। आज श्यामसुंदर सखाओं को खिजा रहा है। सुबल, भद्र, तोक-सबने कह लिया; कितु किसी की सुनता ही नहीं। 'कनूं।' दाऊ ने पुकारा। किंतु कन्हाई कहा सुनता है। धूप पड़ रही है, रेत तप चुकी, इसके भाल पर स्वेदकण चमकने लगे हैं, इसका मुख लाल-लाल हो गया है किंतु इसका ध्यान सखाओं को खिजाने की ओर है। सबको खिझाने के लिए यह ओर शीघ्रता से नाच रहा है। जान-बूझकर पैर इस प्रकार पटकता है कि नुपुर अधिक से अधिक शब्द #Books

|| श्री हरि: || 76 - डांट पड़ी 'दादा, कनूं धूप में नाच रहा है। देख न, रेत कितनी तप रही है।' भद्र ने दाऊ से कहा। आज श्यामसुंदर सखाओं को खिजा रहा है। सुबल, भद्र, तोक-सबने कह लिया; कितु किसी की सुनता ही नहीं। 'कनूं।' दाऊ ने पुकारा। किंतु कन्हाई कहा सुनता है। धूप पड़ रही है, रेत तप चुकी, इसके भाल पर स्वेदकण चमकने लगे हैं, इसका मुख लाल-लाल हो गया है किंतु इसका ध्यान सखाओं को खिजाने की ओर है। सबको खिझाने के लिए यह ओर शीघ्रता से नाच रहा है। जान-बूझकर पैर इस प्रकार पटकता है कि नुपुर अधिक से अधिक शब्द #Books

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || 75 - करुणा 'कनूं, तुझे किसने मारा है?' सुकुमार कन्हाई की पीठ पर कटिदेश में एक नन्हीं-सी खरोंच आ गयी है। रक्त आया नहीं है किंतु छलछला आया-सा लगता है। नन्हीं खरोंच-किंतु श्याम कितना सुकूमार है। दाऊ के कमल-दल के समान सहज अरुण नेत्र सर्वथा किंशुकारुण हो उठे हैं और उनमें जल भर आया है। भ्रूमण्डल कठोर हो गये हैं और मुख तमतमा आया है। उसके रहते कोई उसके भाई की ओर अंगुली उठा सकता है। कौन है वह? 'कहां ?मुझे किसने मारा?' श्याम को पता ही नहीं कि उसे खरोंच भी आयी। 'यह क्या है?' दाऊ के नेत्र #Books

|| श्री हरि: || 75 - करुणा 'कनूं, तुझे किसने मारा है?' सुकुमार कन्हाई की पीठ पर कटिदेश में एक नन्हीं-सी खरोंच आ गयी है। रक्त आया नहीं है किंतु छलछला आया-सा लगता है। नन्हीं खरोंच-किंतु श्याम कितना सुकूमार है। दाऊ के कमल-दल के समान सहज अरुण नेत्र सर्वथा किंशुकारुण हो उठे हैं और उनमें जल भर आया है। भ्रूमण्डल कठोर हो गये हैं और मुख तमतमा आया है। उसके रहते कोई उसके भाई की ओर अंगुली उठा सकता है। कौन है वह? 'कहां ?मुझे किसने मारा?' श्याम को पता ही नहीं कि उसे खरोंच भी आयी। 'यह क्या है?' दाऊ के नेत्र #Books

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || 69 - सेवा 'दादा, तू सुबल की गोद में सिर रखकर सो जा।' कन्हाई को जब जो धुन चढ गयी, अपनी धुन तो वह पूरी ही करेगा। अपने बडे़ भाई का हाथ पकडकर यह खीचने लगा है। स्वयं अपने हाथों इस तमाल के नीचे किसलय तथा कुसुमदल बिछाकर शय्या बनायी है बड़े श्रम से इसने। अब उस श्रम को सफल भी तो होना चाहिए। 'क्यों?' दाऊ ने पूछ लिया। 'तू थक गया है। देख मैंने तेरे लिए कितनी सुंदर शय्या बनायी है।' कितना बढिया तर्क है। श्याम ने शय्या बनायी है इसलिए दाऊ थक गया है। #Books

|| श्री हरि: || 69 - सेवा 'दादा, तू सुबल की गोद में सिर रखकर सो जा।' कन्हाई को जब जो धुन चढ गयी, अपनी धुन तो वह पूरी ही करेगा। अपने बडे़ भाई का हाथ पकडकर यह खीचने लगा है। स्वयं अपने हाथों इस तमाल के नीचे किसलय तथा कुसुमदल बिछाकर शय्या बनायी है बड़े श्रम से इसने। अब उस श्रम को सफल भी तो होना चाहिए। 'क्यों?' दाऊ ने पूछ लिया। 'तू थक गया है। देख मैंने तेरे लिए कितनी सुंदर शय्या बनायी है।' कितना बढिया तर्क है। श्याम ने शय्या बनायी है इसलिए दाऊ थक गया है। #Books

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || 65 - आँधी आयी 'हम्मा।' गायों ने कान खड़े का दिए हैं। चरना बंद करके वे स्वयं एकत्र हो गयी हैं झुण्ड की झुण्ड और अब लगता है कि गोष्ट को भागने वाली ही हैं । 'कनूं! देख आँधी आ रही है।' कपि इधर-उधर छिपने लगे हैं। पक्षी उड़ते हैं आकुल-से और चीलें ऊपर -खूंब ऊपर मण्डल बनाकर चक्कर काटने लगी हैं। गोपकूमार ठीक ही तो कहते हैं कि आँधी आ रही है। दिशाएं धूमिल हो रही हैं और पश्चिमी आकाश में कपिश रंग की घटा-सी घेरे आ रही है, किंतु कन्हाई तो नाच रहा है। यह दोनों हाथ पूरे फैलाकर गोलमोल घूम रहा है। #Books

|| श्री हरि: || 65 - आँधी आयी 'हम्मा।' गायों ने कान खड़े का दिए हैं। चरना बंद करके वे स्वयं एकत्र हो गयी हैं झुण्ड की झुण्ड और अब लगता है कि गोष्ट को भागने वाली ही हैं । 'कनूं! देख आँधी आ रही है।' कपि इधर-उधर छिपने लगे हैं। पक्षी उड़ते हैं आकुल-से और चीलें ऊपर -खूंब ऊपर मण्डल बनाकर चक्कर काटने लगी हैं। गोपकूमार ठीक ही तो कहते हैं कि आँधी आ रही है। दिशाएं धूमिल हो रही हैं और पश्चिमी आकाश में कपिश रंग की घटा-सी घेरे आ रही है, किंतु कन्हाई तो नाच रहा है। यह दोनों हाथ पूरे फैलाकर गोलमोल घूम रहा है। #Books

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || 57 - स्नेहाश्रय 'दादा, तू बुला इन सबको।' कन्हाई हंस रहा है। मृग उसके चरणों को अपनी लाल - लाल कोमल जिव्हा से चाट लिया करते हैं बार-बार। गिलहरियां उनसे भी अधिक धृष्ट हैं। वे श्याम के अंगों को ही अपनी शय्या बनाना चाहती हैं। पक्षियों का समुदाय पृथक फुदकता-उमड़ता रहता है। इसके चारों ओर मृग बछड़ों के समान इसे बार-बार सूंघते रहना चाहते हैं। 'तू एक बच्चा लेगा कृष्ण मृग का।' दाऊ बड़े स्नेह से एक मृगी को दूर्वा खिला रहा है। मृगी का नवजात शिशु दाऊ के पास उससे सटकर बैठ गया है। 'मैं इसे घर #Books

|| श्री हरि: || 57 - स्नेहाश्रय 'दादा, तू बुला इन सबको।' कन्हाई हंस रहा है। मृग उसके चरणों को अपनी लाल - लाल कोमल जिव्हा से चाट लिया करते हैं बार-बार। गिलहरियां उनसे भी अधिक धृष्ट हैं। वे श्याम के अंगों को ही अपनी शय्या बनाना चाहती हैं। पक्षियों का समुदाय पृथक फुदकता-उमड़ता रहता है। इसके चारों ओर मृग बछड़ों के समान इसे बार-बार सूंघते रहना चाहते हैं। 'तू एक बच्चा लेगा कृष्ण मृग का।' दाऊ बड़े स्नेह से एक मृगी को दूर्वा खिला रहा है। मृगी का नवजात शिशु दाऊ के पास उससे सटकर बैठ गया है। 'मैं इसे घर #Books

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || 56 - उलाहना 'दादा, कनूं मेरा दांव नहीं देता। मैं मारूंगा उसे।' श्रीदाम रोष में है। उसका गौर मुख कुछ लाल हो गया है। उसके बड़े - बड़े नेत्र भरे से हैं। दाऊ यहां न होता तो वह अवश्य श्याम से झगड़ पड़ता। यह भी कोई बात है कि कन्हाई उसका दांव नहीं देता और उल्टे उसे अंगूठा दिखाकर चिढ़ाता है। वह दौड़ने में कृष्ण से कुछ दुर्बल तो है नहीं। किंतु यह दाऊ दादा फिर छोटे भाई का पक्ष न लेने लगे। 'यह कुछ अच्छी बात नहीं।' दाऊ के लिए तो सभी सखा समान हैं। वह भला, क्यों छोटे भाई का पक्ष करे। उसने कह #Books

|| श्री हरि: || 56 - उलाहना 'दादा, कनूं मेरा दांव नहीं देता। मैं मारूंगा उसे।' श्रीदाम रोष में है। उसका गौर मुख कुछ लाल हो गया है। उसके बड़े - बड़े नेत्र भरे से हैं। दाऊ यहां न होता तो वह अवश्य श्याम से झगड़ पड़ता। यह भी कोई बात है कि कन्हाई उसका दांव नहीं देता और उल्टे उसे अंगूठा दिखाकर चिढ़ाता है। वह दौड़ने में कृष्ण से कुछ दुर्बल तो है नहीं। किंतु यह दाऊ दादा फिर छोटे भाई का पक्ष न लेने लगे। 'यह कुछ अच्छी बात नहीं।' दाऊ के लिए तो सभी सखा समान हैं। वह भला, क्यों छोटे भाई का पक्ष करे। उसने कह #Books

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Anil Siwach

|| श्री हरि: || 50 - जागरण 'हुम्मा! हुम्मा!' गायें बहुत रात पहले ही पुकारने लगती हैं। बछड़े गोष्ठ से भागकर द्वार पर आ जुटते हैं। मैया को लगता है कि सब उसके लाल को जगाना चाहते हैं। कन्हाई सो रहा है। दूध से उजले पलंग पर यह नीलम की सुकुमार मूर्ति जैसा इसके इधर-उधर अलस पड़े लाल - लाल कर - चरण। अलकें मुख पर घिर आयी हैं। झीना पीत पट मैया ने उढ़ा दिया है इसे। बड़ी - बड़ी पलकें बंद हैं। #Books

|| श्री हरि: || 50 - जागरण 'हुम्मा! हुम्मा!' गायें बहुत रात पहले ही पुकारने लगती हैं। बछड़े गोष्ठ से भागकर द्वार पर आ जुटते हैं। मैया को लगता है कि सब उसके लाल को जगाना चाहते हैं। कन्हाई सो रहा है। दूध से उजले पलंग पर यह नीलम की सुकुमार मूर्ति जैसा इसके इधर-उधर अलस पड़े लाल - लाल कर - चरण। अलकें मुख पर घिर आयी हैं। झीना पीत पट मैया ने उढ़ा दिया है इसे। बड़ी - बड़ी पलकें बंद हैं। #Books

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Anil Siwach

46 - पावस-नृत्य || श्री हरि: || #Books

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