"आसमान बरस रहा रात-भर
अचानक से आंख खुल गई और
रात का तीसरा पहर भी बड़ा अज़ीब था
सारी रात लिखते लिखते यूं ही नीकल गई
पर लिखना चाहते थे वो ना लिख पाए
कुछ कहेना था पर केह ना सके
यूं तो सड़क का सन्नाटा भी जानलेवा था,
कुछ मेरी ख़ामोशी सा ..
रात के अंधेरे में कहीं कुछ पनपता है
कुछ ख़्वाब सा ..
कुछ ख़्वाहिश सा ..
कुछ आधा - अधूरा सा ..
बस,
ऐसे ही सवेरा भी हो गया,
थोड़ा अपना सा ..
थोड़ा पराया सा ..
थोड़ा अजनबी सा ..
हां, आसमान अब तक रुका नहीं है..!!"