कोरोना बीत ही जाए नही दुनिया का क्या होगा ढंकेगे चाँद से मुखड़े मुखौटा बादल बना होगा की कुछ मशहूर है गलिया भरेगी न तो क्या होगा ढलेगी होठ की लाली कहा शृंगार फिर होगा रस्म नजर चुराने की मिलने में मजा फिर क्या ये आंखे बोलती तो है मगर मंजर वो क्या होगा की है किस देश की भाषा भला कोई क्या समझेगा post pendemic