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किरण...... वो नभ की चांदनी बनकर धरा पर ऐसे छाती

किरण......

वो नभ की चांदनी बनकर धरा
 पर ऐसे छाती है,
हो सुन्दर नीलिमा जैसे वो नभ से ऐसे आती है।
बड़ी सुन्दर छवि है उसकी गागर में हो सागर जो,
है उसमें मंद खुशबू जैसे कोई गुल खिलाती है।

मैं उसकी चंद गहराई को अबतक जान न पाया,
वो इतनी तंग है कि उसको अबतक तान न पाया।
करूँ कितना भी कोशिश उसको हाथों में जकड़ने की,
मगर अक्सर किरण हाथों से मेरे छूट जाती है।.........

         #Written by- JAY SINGH VERMA....@jsv #किरण
#poetry......
किरण......

वो नभ की चांदनी बनकर धरा
 पर ऐसे छाती है,
हो सुन्दर नीलिमा जैसे वो नभ से ऐसे आती है।
बड़ी सुन्दर छवि है उसकी गागर में हो सागर जो,
है उसमें मंद खुशबू जैसे कोई गुल खिलाती है।

मैं उसकी चंद गहराई को अबतक जान न पाया,
वो इतनी तंग है कि उसको अबतक तान न पाया।
करूँ कितना भी कोशिश उसको हाथों में जकड़ने की,
मगर अक्सर किरण हाथों से मेरे छूट जाती है।.........

         #Written by- JAY SINGH VERMA....@jsv #किरण
#poetry......