रंग सहर के दुआ लिए गूँजे बन अरदास आज इबादत के पैरों से ख़ुदा चला है पास ना मंदिर में, ना मस्ज़िद में, वो नुक्कड़ में तारी है नन्हे बच्चों का खेल खिलौना, वो तो बारी बारी है कभी उम्मीदों का हमज़ोली, कभी किसी की आस आज इबादत के पैरों से ख़ुदा चला है पास मंदिर की सीढ़ी कभी हाँफता, इरहम में वो हाज़ी है ख़ुदा भी तेरे मेरे जैसा, कभी कुफ़्र को राज़ी है उसको भी रहती है शायद, तेरी मेरी तलाश आज इबादत के पैरों से ख़ुदा चला है पास रेल में भी वो मिलता है, रेलों में मिल जाता है जहाँ झुका हो सर शिद्दत से, रूह में वो सील जाता है गर्म ऊन है वही पश्म का, उड़ती हुई कपास आज इबादत के पैरों से ख़ुदा चला है पास कभी आइने से मुस्काकर कर लेता है बात तकिए पर भी संग सर रख कर काटी उसने रात कभी जिस्म है और कभी है पहना हुआ लिबास आज इबादत के पैरों से ख़ुदा चला है पास हमज़ोली, माशूक़ भी वो है, और वो मेरा रक़ीब मेहनत भी वो, शिद्दत भी वो, और वो मेरा नसीब गेंहू की बाली भी वो है , और वो फूल पलाश आज इबादत के पैरों से ख़ुदा चला है पास ~ इबादत के पैर @ उदासियाँ ©Mo k sh K an ~इबादत के पैर@उदासियाँ #hope #prayer #zen #mokshkan #poetry #poem #bliss