यूँ लानत है उसपे जो ये कर गया था बदन नोचकर जो हवस भर गया था दरिंदो ने उसको दबोचा था ऐसे महज़ सांस थी जिस्म तो मर गया था मुझे बख्श दो ये सिसक कर कही वो मगर इक निहत्थी से वो लड़ गया था बगीचे में जैसे वो नाज़ुक कली थी मगर ये गुलिस्तां उझड़ अब गया था वो देती रही वास्ता रब का उसको मगर वो खुदा से कहाँ डर गया था वही खेल देखा वो सपने में पर अब बहन रो रही थी जो वो घर गया था खुदा तूने दुनिया बताया था जिसको जहन्नम पर उसके लिये बन गया था