इंतज़ार ◆◆◆◆ एक दिया राह में जलाये बैठी हूँ। मैं इंतज़ार में पलके बिछाये बैठी हूँ। सुना है पसन्द है उसको भी लाज इसलिये घूंघट गिराये बैठी हूँ। इनायत उसकी किसी दिन तो होगी मैं दिल को अपने समझाये बैठी हूँ। कमबख्त इश्क़ है कि सुनता नही मैं धड़कनों को राह में सजाये बैठी हूँ। न होश है वक्त का न ख्याल है कुछ मैं कुछ यूँ होशो हवास गँवाये बैठी हूँ। न छोड़ती हूँ आस, न फिक्र है कोई भी मैं तसल्ली में दिल बहलाये बैठी हूँ। किसी दिन तो आएगा सितमगर महबूब मैं उस छलिया को दिल में बसाये बैठी हूँ। उतार दी है पायल बजने के डर से मैंने मैं फूलों से खुद को सजाये बैठी हूँ। अब होगयी देखो इंतज़ार की हद बेहद मैं पलकों को द्वार पर बिछाये बैठी हूँ। हर आने जाने वाले से पूछती हूँ पता इतना खुद को पागल बनाये बैठी हूँ। तरस गयी हूँ एक नज़र को तुम्हारी मैं इस प्रेम इश्क़ में खुद को छले बैठी हूँ। एक बार दीदार हो दौड़कर गले से लगा लूँ मैं खुद को इत्र से नहलाये बैठी हूँ। मेरे प्रेम की परीक्षा मत लेना कभी मैं रग रग में नाम तुम्हारा लिखवाये बैठी हूँ क्या पता कब छोडूं तन ये मिट्टी का मैं हर साँस पर नाम तुम्हारा गुदवाये बैठी हूँ। कुछ इस तरह से रूह में तुम्हे छुपाये बैठी हूँ। - नेहा शर्मा kanha prem 😘😍