ओ आई बाबा, बात सुनो, मन विचलित है, तुम आज सुनो, मैं पीर पराई सुन-२ के, हालात से डरने लगता हूँ, मैं था तारा, भू मंडल का, जुगनू होने से बचता हूँ..... कि रात दिनों बस एक आस, जो तुम होते फ़िर मेरे पास, मैं हुआ वो लहरें, तन्हा सी, जो रहती थी, सागर के पास... तुम्हें याद है क्या, रोना मेरा, माँ संग चलदो, डरना मेरा, पा याद है क्या, वो दिन अब भी, फीतों की उलझी, वो गुत्थी, वो लिपट के, तुझसे कह देना, माँ अरहर दाल, तू दे देना, मैं प्रेम में उलझी डोर हूँ माँ, आगोश में अपनी लेलो ना.... कुछ यार बड़े है पागल से, जान हाथ में लेके फ़िरते हैं, मैं इनसे कैसे कह दूं ये, मेरी साँस के, दो ही हिस्से हैं, कि एक साँस अंदर तुझमें, और एक में वो सब यार रहें, मैं खो जाऊं, चाहें दुनिया में, साँसें तुममें आज़ाद रहे...!!! #hindikavita #maapapa #friends #hindipoetry