दिख रही हो रूबरू पर फासले तो हैं
उलझे पड़े हैं धागे मगर हमें जोड़ते तो हैं
लिपटकर रो नहीं सकते ये जानता हूँ मैं
कायदे जन रहे हैं फासिले मानता हूँ मैं
दिख रही हो नूर सी रुसवाइयों के छत तले
टपककर गिरती है वफ़ा रात में तकिये तले
चल रहे हैं रूह पर चाँदनी के नश्तर रात भर #Pain#Love#SAD#poem#hurt#audio#Arsh