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अपने ही उलझे ख़्वाबों में वो ज़िद का थोड़ा स्वाद ह

अपने ही उलझे ख़्वाबों में
वो ज़िद का थोड़ा स्वाद है

सब खुले गगन में भी कैद रहेंगे
Shah अब पिंजरे में भी "आज़ाद" है
अपने ही उलझे ख़्वाबों में
वो ज़िद का थोड़ा स्वाद है

सब खुले गगन में भी कैद रहेंगे
Shah अब पिंजरे में भी "आज़ाद" है