सुनो! पत्तों पर गिरी ओस की बूंद सी हूँ मैं, जो ये रात बीत गई तो सुबह न मिलूंगी मैं। अपना कोई रंग नहीं है उसी का अपनाया, जिस भी चीज़ पर आसमां से गिरी हूँ मैं। जो जकड़ना चाहोगे कभी तुम मुझको, बनकर पानी हथेली पे बिखर जाऊंगी मैं। जो देखा प्यार भरी नजर से मुझे तुमने, तुमको तुम्हारा ही अक्स दिखाऊँगी मैं। आसमाँ से गिरी पत्तों पर सर्द सी रातों में, दर्द की हवाओं में सूख ही जाऊँगी मैं। ©सखी #ओस #बूँद #सुबह #अक्स