#OpenPoetry #Request to All People Please Respect To All Women# में नारी हूँ गर्व करूँ, या खुद ही से डर जाऊँ में। डर के साये में मैं जीती,क्या खुद ही मर जाऊँ में।। बेटी हो जाए जो घर में, उसे बोझ समझ के पाला हैं। खुशियाँ जब आती घर में, हो जाए एक लाला हैं।। क्या किस्मत पाई है नारी,बचपन से ही हीन हुई। देख के ऐसा भेदभाव, क्या खुद ही मर जाऊँ में।। बड़ी हुई जब मान व,मर्यादा का बोझ उसे डाला। इस दुनियाँ ने उसको,ये धन है पराया कह डाला। क्या क्या सहती रहती है,फिर भी चुप रहती नारी।। दुनियाँ के ताने हस लूँ, क्या खुद ही मर जाऊँ में।। चार साल की हो या,कितने ही सालो की नारी। लूट लिया जाता है दामन,हो जाती है बेचारी।। लूटते है बेदाग है वो,बस नारी होती है दागी। इस दूषित माहौल में जिंदा,क्या खुद ही मर जाऊँ में।। शादी की वारी आई, दहेजो का व्यापार चला। क्यों बनकर आई लड़की,पल-पल मुझकों सबने छला।। ईश्वर ने भी मुझकों छलके,विदा की रश्म बनाई है। जन्म जहाँ उससे ही विदाई,क्या खुद ही मर जाऊँ में।। #OpenPoetry #Respectwomen