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प्रज्ञा PRAGYA मैं अपने ड्राइंग रूम में बैठकर टीवी

प्रज्ञा
PRAGYA मैं अपने ड्राइंग रूम में बैठकर टीवी पर समाचार देख रही थी। अचानक मेरे फोन की घंटी बजती है हालांकि क्योंकि अभी से 8:30 बजा था। पर फोन किसी अनजान व्यक्ति का था।मुझे नहीं पता था कि जब फोन उठाऊंगी तो सामने वाला लड़का होगा या लड़की। वैसे भी जब किसी एक लड़की को फोन आता है ,वह भी किसी अनजान नंबर से। तो उसके मन में हजारों सवालों की श्रंखला चलने लगती है कौन है ?क्या होगा? क्या बात करेगा? कैसे बात करेगा? ना जाने कितने सारे सवाल मन में उठ रहे होते हैं ।वह चंद सेकेंड में हम कितना सब कुछ सोच जाते है।अपनी सारी भावनाओं को दरकिनार करते हुए मैंने फोन उठाया फोन पर एक मीठी सी आवाज थी जो की मेरे कानों में मिश्री कि तरह घुल गई। मुझे वह किसी लड़के का कॉल नहीं था ।वह एक लड़की का कॉल था। उसने कहा मैं प्रज्ञा बोल रही हूं।मैंने कहा ठीक है आप प्रज्ञा है लेकिन कौन सी प्रज्ञा ??मैं तो आपको नहीं जानती ।और आपको मेरा नंबर कैसे मिला ??जब किसी भी अनजान नंबर से आपको फोन आता है, तो सबसे पहले आपका मन में यही सवाल होता है 
कि इसके पास मेरा नंबर कैसे पहुंचा??? तो मैंने भी सर्वप्रथम यही प्रश्न किया कि आपको मेरा नंबर कैसे मिला ??और मैं आपको नहीं जानती हू।उसने मेरे इस बात का जवाब ना देते हुए प्रज्ञा ने सिर्फ इतना सा कहा कि मैं जानती हूं आप मुझे नहीं जानती हैं लेकिन मुझे बस मुझे इतना अकेलापन महसूस हो रहा है कि मैं बस बात करना चाहती हूं
 मैंने कहा ठीक है आप बात कर सकती है लेकिन मुझे तो आपके बारे में कुछ पता नहीं है फिर उसने अपनी कहानी अपने जीवन की व्यथाए  बताने की कोशिश की। उसके आंखों के आंसू थे। जितना मैं महसूस कर सकती थी उसकी आवाज को उसके दर्द को बयां कर रहे थे। पता नहीं उसके अंदर कितनी पीड़ा समाहित थी। जो वह बयां करना चाहती थी मुझसे।या किसी से भी जो उस से बात करने के लिए तैयार हो। प्रज्ञा को पैरालिसिस की बीमारी थी ।वह चल नहीं पाती थी। यह बीमारी उसे हमेशा से नहीं थी यह बीमारी उसको अभी कुछ चंद महीनों से हुई थी।जब मुझे यह पता चला तो मैं एकदम स्तब्ध रह गई मुझे समझ में नहीं आया क्या। अभी तक मैं जिस से बात करने से कतरा रही थी कि ना जाने कौन है?? अनजान है ..मैं किस से बात करूं ??अपना समय क्यों बर्बाद करूं?? लेकिन वहीं जब मैंने उसकी चीजें सुनी उसके बारे में जाना कि वह कुछ दिनों पहले कितने खुश मिजाज थी कितने नरम दिल थी अपनी जिंदगी को खुलकर जीने वाली लड़की हुआ करती थी।तो मुझे लगा कि हां शायद मुझे उससे सुनना चाहिए उसे समझना चाहिए उसने मुझे बताया कि कैसे एक पैरालिसिस के मरीज को समाज किस नजरिए से देखता है।जब कोई व्यक्ति चल नहीं पाता है तो वो खुद में काफी परेशान होता है ।और उसके घर के लोग उसकी और परेशानियों को बढ़ाने पर लगे होते हैं।तब उसके घर के लोग उस असहाय व्यक्ति के  साथ क्या कुछ करते हैं। उसने मुझे बताया मेरे घर में मेरी चाची है ,दादी है ,चाचू है, पर मेरे  मम्मा पापा नहीं है ।मैं बहुत अकेली हूं मेरे पास मेरी चीज सांसों को मेरी बातों को सुनने वाला कोई नहीं है मैं सभी को बुलाती रहती हूं कि कोई दो पल आए ।मेरे पास बैठे मुझे समझे, मुझे समझाए, मेरा हौसला बढ़ाएं ,लेकिन अफसोस मेरे घर में किसी को भी मेरे लिए समय नहीं है ।सब अपने अपने कामों में ,अपनी अपनी उलझनों में इतना व्यस्त है, कि मैं अकेलेपन में ही दबी जा रही हूं ।मेरे अंदर जीने की इच्छा समाप्त होती जा रही है।मेरे आंखों से आंसू चलते चले जा रहे थे और वह भी शायद चीजें मुंह से बयां करने से ज्यादा अपनी आंखों से बयां कर रही थी मैं आपने सामने तो नहीं थी लेकिन मेरे मन में कसक उठी थी कि क्यों ना मैं उसके सामने जाऊं से मिल उसको समझाऊ।मैंने कॉल पे ही उसका हौसला बढ़ाने का प्रयास किया। उसकी खोई हुई हिम्मत आत्म विश्वास बढ़ाने का प्रयास किया।
15 मिनट पहले मैं जिससे अनजान थी अपरिचित थी ।वही 15 मिनट बाद मुझे बहुत अपना सा लगता है कि कि उसका दर्द मेरा दर्द कहीं ना कहीं बराबर था।मैं भी वही सब झेल रही थी। जो वह झेल रही थी मैं भी अपनी हिम्मत हार चुकी थी और वह भी इतनी हिम्मत हार चुकी थी। उसका हौसला बढ़ाते बढ़ाते मेरे अंदर भी एक उम्मीद की किरण जगी। वह एक कॉल, उसकी एक खामोशी, मेरा एक बार उसको सुनना, उसको समझना, उसको जानना । शायद हमारी और उसकी जिंदगी में हजार बदलाव ला चुके थे।।
प्रज्ञा
PRAGYA मैं अपने ड्राइंग रूम में बैठकर टीवी पर समाचार देख रही थी। अचानक मेरे फोन की घंटी बजती है हालांकि क्योंकि अभी से 8:30 बजा था। पर फोन किसी अनजान व्यक्ति का था।मुझे नहीं पता था कि जब फोन उठाऊंगी तो सामने वाला लड़का होगा या लड़की। वैसे भी जब किसी एक लड़की को फोन आता है ,वह भी किसी अनजान नंबर से। तो उसके मन में हजारों सवालों की श्रंखला चलने लगती है कौन है ?क्या होगा? क्या बात करेगा? कैसे बात करेगा? ना जाने कितने सारे सवाल मन में उठ रहे होते हैं ।वह चंद सेकेंड में हम कितना सब कुछ सोच जाते है।अपनी सारी भावनाओं को दरकिनार करते हुए मैंने फोन उठाया फोन पर एक मीठी सी आवाज थी जो की मेरे कानों में मिश्री कि तरह घुल गई। मुझे वह किसी लड़के का कॉल नहीं था ।वह एक लड़की का कॉल था। उसने कहा मैं प्रज्ञा बोल रही हूं।मैंने कहा ठीक है आप प्रज्ञा है लेकिन कौन सी प्रज्ञा ??मैं तो आपको नहीं जानती ।और आपको मेरा नंबर कैसे मिला ??जब किसी भी अनजान नंबर से आपको फोन आता है, तो सबसे पहले आपका मन में यही सवाल होता है 
कि इसके पास मेरा नंबर कैसे पहुंचा??? तो मैंने भी सर्वप्रथम यही प्रश्न किया कि आपको मेरा नंबर कैसे मिला ??और मैं आपको नहीं जानती हू।उसने मेरे इस बात का जवाब ना देते हुए प्रज्ञा ने सिर्फ इतना सा कहा कि मैं जानती हूं आप मुझे नहीं जानती हैं लेकिन मुझे बस मुझे इतना अकेलापन महसूस हो रहा है कि मैं बस बात करना चाहती हूं
 मैंने कहा ठीक है आप बात कर सकती है लेकिन मुझे तो आपके बारे में कुछ पता नहीं है फिर उसने अपनी कहानी अपने जीवन की व्यथाए  बताने की कोशिश की। उसके आंखों के आंसू थे। जितना मैं महसूस कर सकती थी उसकी आवाज को उसके दर्द को बयां कर रहे थे। पता नहीं उसके अंदर कितनी पीड़ा समाहित थी। जो वह बयां करना चाहती थी मुझसे।या किसी से भी जो उस से बात करने के लिए तैयार हो। प्रज्ञा को पैरालिसिस की बीमारी थी ।वह चल नहीं पाती थी। यह बीमारी उसे हमेशा से नहीं थी यह बीमारी उसको अभी कुछ चंद महीनों से हुई थी।जब मुझे यह पता चला तो मैं एकदम स्तब्ध रह गई मुझे समझ में नहीं आया क्या। अभी तक मैं जिस से बात करने से कतरा रही थी कि ना जाने कौन है?? अनजान है ..मैं किस से बात करूं ??अपना समय क्यों बर्बाद करूं?? लेकिन वहीं जब मैंने उसकी चीजें सुनी उसके बारे में जाना कि वह कुछ दिनों पहले कितने खुश मिजाज थी कितने नरम दिल थी अपनी जिंदगी को खुलकर जीने वाली लड़की हुआ करती थी।तो मुझे लगा कि हां शायद मुझे उससे सुनना चाहिए उसे समझना चाहिए उसने मुझे बताया कि कैसे एक पैरालिसिस के मरीज को समाज किस नजरिए से देखता है।जब कोई व्यक्ति चल नहीं पाता है तो वो खुद में काफी परेशान होता है ।और उसके घर के लोग उसकी और परेशानियों को बढ़ाने पर लगे होते हैं।तब उसके घर के लोग उस असहाय व्यक्ति के  साथ क्या कुछ करते हैं। उसने मुझे बताया मेरे घर में मेरी चाची है ,दादी है ,चाचू है, पर मेरे  मम्मा पापा नहीं है ।मैं बहुत अकेली हूं मेरे पास मेरी चीज सांसों को मेरी बातों को सुनने वाला कोई नहीं है मैं सभी को बुलाती रहती हूं कि कोई दो पल आए ।मेरे पास बैठे मुझे समझे, मुझे समझाए, मेरा हौसला बढ़ाएं ,लेकिन अफसोस मेरे घर में किसी को भी मेरे लिए समय नहीं है ।सब अपने अपने कामों में ,अपनी अपनी उलझनों में इतना व्यस्त है, कि मैं अकेलेपन में ही दबी जा रही हूं ।मेरे अंदर जीने की इच्छा समाप्त होती जा रही है।मेरे आंखों से आंसू चलते चले जा रहे थे और वह भी शायद चीजें मुंह से बयां करने से ज्यादा अपनी आंखों से बयां कर रही थी मैं आपने सामने तो नहीं थी लेकिन मेरे मन में कसक उठी थी कि क्यों ना मैं उसके सामने जाऊं से मिल उसको समझाऊ।मैंने कॉल पे ही उसका हौसला बढ़ाने का प्रयास किया। उसकी खोई हुई हिम्मत आत्म विश्वास बढ़ाने का प्रयास किया।
15 मिनट पहले मैं जिससे अनजान थी अपरिचित थी ।वही 15 मिनट बाद मुझे बहुत अपना सा लगता है कि कि उसका दर्द मेरा दर्द कहीं ना कहीं बराबर था।मैं भी वही सब झेल रही थी। जो वह झेल रही थी मैं भी अपनी हिम्मत हार चुकी थी और वह भी इतनी हिम्मत हार चुकी थी। उसका हौसला बढ़ाते बढ़ाते मेरे अंदर भी एक उम्मीद की किरण जगी। वह एक कॉल, उसकी एक खामोशी, मेरा एक बार उसको सुनना, उसको समझना, उसको जानना । शायद हमारी और उसकी जिंदगी में हजार बदलाव ला चुके थे।।
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मैं अपने ड्राइंग रूम में बैठकर टीवी पर समाचार देख रही थी। अचानक मेरे फोन की घंटी बजती है हालांकि क्योंकि अभी से 8:30 बजा था। पर फोन किसी अनजान व्यक्ति का था।मुझे नहीं पता था कि जब फोन उठाऊंगी तो सामने वाला लड़का होगा या लड़की। वैसे भी जब किसी एक लड़की को फोन आता है ,वह भी किसी अनजान नंबर से। तो उसके मन में हजारों सवालों की श्रंखला चलने लगती है कौन है ?क्या होगा? क्या बात करेगा? कैसे बात करेगा? ना जाने कितने सारे सवाल मन में उठ रहे होते हैं ।वह चंद सेकेंड में हम कितना सब कुछ सोच जाते है।अपनी सारी भावनाओं को दरकिनार करते हुए मैंने फोन उठाया फोन पर एक मीठी सी आवाज थी जो की मेरे कानों में मिश्री कि तरह घुल गई। मुझे वह किसी लड़के का कॉल नहीं था ।वह एक लड़की का कॉल था। उसने कहा मैं प्रज्ञा बोल रही हूं।मैंने कहा ठीक है आप प्रज्ञा है लेकिन कौन सी प्रज्ञा ??मैं तो आपको नहीं जानती ।और आपको मेरा नंबर कैसे मिला ??जब किसी भी अनजान नंबर से आपको फोन आता है, तो सबसे पहले आपका मन में यही सवाल होता है कि इसके पास मेरा नंबर कैसे पहुंचा??? तो मैंने भी सर्वप्रथम यही प्रश्न किया कि आपको मेरा नंबर कैसे मिला ??और मैं आपको नहीं जानती हू।उसने मेरे इस बात का जवाब ना देते हुए प्रज्ञा ने सिर्फ इतना सा कहा कि मैं जानती हूं आप मुझे नहीं जानती हैं लेकिन मुझे बस मुझे इतना अकेलापन महसूस हो रहा है कि मैं बस बात करना चाहती हूं मैंने कहा ठीक है आप बात कर सकती है लेकिन मुझे तो आपके बारे में कुछ पता नहीं है फिर उसने अपनी कहानी अपने जीवन की व्यथाए बताने की कोशिश की। उसके आंखों के आंसू थे। जितना मैं महसूस कर सकती थी उसकी आवाज को उसके दर्द को बयां कर रहे थे। पता नहीं उसके अंदर कितनी पीड़ा समाहित थी। जो वह बयां करना चाहती थी मुझसे।या किसी से भी जो उस से बात करने के लिए तैयार हो। प्रज्ञा को पैरालिसिस की बीमारी थी ।वह चल नहीं पाती थी। यह बीमारी उसे हमेशा से नहीं थी यह बीमारी उसको अभी कुछ चंद महीनों से हुई थी।जब मुझे यह पता चला तो मैं एकदम स्तब्ध रह गई मुझे समझ में नहीं आया क्या। अभी तक मैं जिस से बात करने से कतरा रही थी कि ना जाने कौन है?? अनजान है ..मैं किस से बात करूं ??अपना समय क्यों बर्बाद करूं?? लेकिन वहीं जब मैंने उसकी चीजें सुनी उसके बारे में जाना कि वह कुछ दिनों पहले कितने खुश मिजाज थी कितने नरम दिल थी अपनी जिंदगी को खुलकर जीने वाली लड़की हुआ करती थी।तो मुझे लगा कि हां शायद मुझे उससे सुनना चाहिए उसे समझना चाहिए उसने मुझे बताया कि कैसे एक पैरालिसिस के मरीज को समाज किस नजरिए से देखता है।जब कोई व्यक्ति चल नहीं पाता है तो वो खुद में काफी परेशान होता है ।और उसके घर के लोग उसकी और परेशानियों को बढ़ाने पर लगे होते हैं।तब उसके घर के लोग उस असहाय व्यक्ति के साथ क्या कुछ करते हैं। उसने मुझे बताया मेरे घर में मेरी चाची है ,दादी है ,चाचू है, पर मेरे मम्मा पापा नहीं है ।मैं बहुत अकेली हूं मेरे पास मेरी चीज सांसों को मेरी बातों को सुनने वाला कोई नहीं है मैं सभी को बुलाती रहती हूं कि कोई दो पल आए ।मेरे पास बैठे मुझे समझे, मुझे समझाए, मेरा हौसला बढ़ाएं ,लेकिन अफसोस मेरे घर में किसी को भी मेरे लिए समय नहीं है ।सब अपने अपने कामों में ,अपनी अपनी उलझनों में इतना व्यस्त है, कि मैं अकेलेपन में ही दबी जा रही हूं ।मेरे अंदर जीने की इच्छा समाप्त होती जा रही है।मेरे आंखों से आंसू चलते चले जा रहे थे और वह भी शायद चीजें मुंह से बयां करने से ज्यादा अपनी आंखों से बयां कर रही थी मैं आपने सामने तो नहीं थी लेकिन मेरे मन में कसक उठी थी कि क्यों ना मैं उसके सामने जाऊं से मिल उसको समझाऊ।मैंने कॉल पे ही उसका हौसला बढ़ाने का प्रयास किया। उसकी खोई हुई हिम्मत आत्म विश्वास बढ़ाने का प्रयास किया। 15 मिनट पहले मैं जिससे अनजान थी अपरिचित थी ।वही 15 मिनट बाद मुझे बहुत अपना सा लगता है कि कि उसका दर्द मेरा दर्द कहीं ना कहीं बराबर था।मैं भी वही सब झेल रही थी। जो वह झेल रही थी मैं भी अपनी हिम्मत हार चुकी थी और वह भी इतनी हिम्मत हार चुकी थी। उसका हौसला बढ़ाते बढ़ाते मेरे अंदर भी एक उम्मीद की किरण जगी। वह एक कॉल, उसकी एक खामोशी, मेरा एक बार उसको सुनना, उसको समझना, उसको जानना । शायद हमारी और उसकी जिंदगी में हजार बदलाव ला चुके थे।।