हमारे शेर हैं, जो हमारी इबारत है । दर्द की नींव पर खड़ी इक इमारत है । जिस जुर्म की सजा काट रही हैं आंखें । कुछ नहीं है, बस इस दिल की शरारत है । azeem khan # जुर्म, सजा, आंखें#