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आजादी की शर्त... शाम 6 बजे का वक़्त, ढलते सूरज की ग

आजादी की शर्त... शाम 6 बजे का वक़्त, ढलते सूरज की गर्मी और ठंढी हवाओं के बीच हो रही लड़ाइयों का आनंद लेता हुआ मैं पास के एक पार्क की तरफ टहलने का मन बना रहा था । हवा चल रही थी और आजादी का खुमार वातावरण में था । कमरे के बालकनी में एक सफेद कबूतर 🕊️ मेरे रखे गेहूं के दाने को बड़ा ही निडर होकर अपने गले मे भरे जा रहा था..। एक शरारत सूझी... उस कबूतर पर मैंने नील की डिब्बी से कुछ बूंदे छिड़क दिए... । उसकी सफेदी दागदार हो गयी । अब मेरे लिए पहचान पाना आसान हो गया कि ये वही कबूतर है जिसे मैं रोज दाना देता हूँ और जो मुझसे अब बिल्कुल नहीं डरता । बेजुबान जब आपका दोस्त बन जाये तो वो आपकी जुबान बड़ी आसानी से समझ लेता है । उसे दोस्ती के कुछ दिनों बाद ही इंसानी सोच से ऊपर इतनी समझ आ गयी थी कि उसे कब अपनी गुटर गू से मुझे disturb करना है और कब नहीं ।
तो ये हरकत करने के बाद, अपने बेजुबान दोस्त को एक पहचान देने के बाद मैं पार्क की तरफ निकला..। कान में ईरफ़ोन ठूसे...कुछ पुराने गजलों के बोल सुनते । अचानक पार्क पहुचने से करीब 100 मीटर पहले...आजाद देश के उस बीच सड़क पर... अचानक आसमां से कुछ गिरा... धब्ब सा...ठीक मेरे से 2 कदम आगे । डर गया मैं... पहले तो लगा जैसे किसी ने छत से कचरा फेंका होगा आजाद देश के आजाद नागरिक की तरह..। मगर... देखा... कोई और नही...मेरा बेजुबां दोस्त था वो... वही सफेद कबूतर..जिसको नीले रंगों की पहचान दी थी मैंने..। पतंग उड़ाने वाले धागों में उलझा हुआ... रगड़ से कटे हुए डैनों से निकलता खून,...पंख बेतहास छितराये हुए सड़क पर गिर कर आंखें हमेशा के लिए बन्द कर चुका था वो... । रफ्तार से उड़ता हुआ शायद किसी के मांझे से टकराया था वो... । एक पंख उड़ान की गति की वजह से रगड़ खा कर आधे से ज्यादा चीरे जा चुके थे । बदहवास गिरते वक़्त भी अपने जख्मी पंखों को एक आखिरी बार फड़फड़ा कर खुद को फिर से उड़ा पाने की नाकाम कोशिश की थी उसने शायद, ये उसके शरीर मे जंजीर की तरह लिपटे मांझे बता रहें थे । इंसानी शौक और मौज ने किस कदर आतंक मचाया है ये पहलीं बार महसूस हो रहा था...। आँखें भीग चुकी थी, दिल मायूसियों ने खंडहर में कहीं दब सा गया था । मैंने उसे उठाया..कोई हलचल नहीं थी... चोंच खुले हुए ढीले पड़ चुके थे... आँखें बंद थी.. । उसे देखते हुए मैं पार्क की तरफ बढा, उसे दोनो हाथों के गोद मे लिए... रास्ते मे मिलने वाले हर बच्चे दिखाते और अपनी ख़ामोश हों रहीं आवाज से उनसे कहते हुए की भगवान के लिए पतंग मत उड़ाओ...देखो इसे... मत उड़ाओ । 😢
जमीन पर रहकर ये महसूस नही कर पाएंगे आप की हवा में उड़ रहा जीव जब जरा सी भी बाधा से टकराता है तो वो आपकी तरह रुकता, सम्भलता और बढ़ता नहीं हैं बल्कि ठीक अगले ही पल वो जमीन की तरफ उसी रफ्तार से गिरता है..। आप जमीन पर होते हैं, आपके पैर पे धागा फस जाएं तो आप रुक कर पूरे वक़्त लेकर उसे निकाल कर फिर अपनी मंजिल की तरफ बढ़ जातें हैं । आसमां में उड़ते परिन्दें के पास इतना वक़्त कहाँ..? वो हवा में रुक नहीं सकता... उसके बाद उसे बस गिरना है... आखिरी बार आसमान को देखते हुए... । 
उस पार्क में उसे दफना कर आ रहा हूँ...उसके शरीर से उस माँझें को निकाल कर जला कर भी । 
आजादी है... खुशियां मनाइए, जरूर मनाइए मगर आजादी की एक छोटी सी शर्त है कि आपकी आजादी वहां खत्म हो जाती हैं जहाँ से वो दूसरों को तकलीफ देने लगे.. । ये बात याद रखिये । पतंग मत उड़ाइये...भगवान के लिए नहीं तो इस बेजुबान के लिए ही सही... 😢😢
- ©PrakashChandra❣️🕊️❣️
#PrakashVaani #Nojoto
आजादी की शर्त... शाम 6 बजे का वक़्त, ढलते सूरज की गर्मी और ठंढी हवाओं के बीच हो रही लड़ाइयों का आनंद लेता हुआ मैं पास के एक पार्क की तरफ टहलने का मन बना रहा था । हवा चल रही थी और आजादी का खुमार वातावरण में था । कमरे के बालकनी में एक सफेद कबूतर 🕊️ मेरे रखे गेहूं के दाने को बड़ा ही निडर होकर अपने गले मे भरे जा रहा था..। एक शरारत सूझी... उस कबूतर पर मैंने नील की डिब्बी से कुछ बूंदे छिड़क दिए... । उसकी सफेदी दागदार हो गयी । अब मेरे लिए पहचान पाना आसान हो गया कि ये वही कबूतर है जिसे मैं रोज दाना देता हूँ और जो मुझसे अब बिल्कुल नहीं डरता । बेजुबान जब आपका दोस्त बन जाये तो वो आपकी जुबान बड़ी आसानी से समझ लेता है । उसे दोस्ती के कुछ दिनों बाद ही इंसानी सोच से ऊपर इतनी समझ आ गयी थी कि उसे कब अपनी गुटर गू से मुझे disturb करना है और कब नहीं ।
तो ये हरकत करने के बाद, अपने बेजुबान दोस्त को एक पहचान देने के बाद मैं पार्क की तरफ निकला..। कान में ईरफ़ोन ठूसे...कुछ पुराने गजलों के बोल सुनते । अचानक पार्क पहुचने से करीब 100 मीटर पहले...आजाद देश के उस बीच सड़क पर... अचानक आसमां से कुछ गिरा... धब्ब सा...ठीक मेरे से 2 कदम आगे । डर गया मैं... पहले तो लगा जैसे किसी ने छत से कचरा फेंका होगा आजाद देश के आजाद नागरिक की तरह..। मगर... देखा... कोई और नही...मेरा बेजुबां दोस्त था वो... वही सफेद कबूतर..जिसको नीले रंगों की पहचान दी थी मैंने..। पतंग उड़ाने वाले धागों में उलझा हुआ... रगड़ से कटे हुए डैनों से निकलता खून,...पंख बेतहास छितराये हुए सड़क पर गिर कर आंखें हमेशा के लिए बन्द कर चुका था वो... । रफ्तार से उड़ता हुआ शायद किसी के मांझे से टकराया था वो... । एक पंख उड़ान की गति की वजह से रगड़ खा कर आधे से ज्यादा चीरे जा चुके थे । बदहवास गिरते वक़्त भी अपने जख्मी पंखों को एक आखिरी बार फड़फड़ा कर खुद को फिर से उड़ा पाने की नाकाम कोशिश की थी उसने शायद, ये उसके शरीर मे जंजीर की तरह लिपटे मांझे बता रहें थे । इंसानी शौक और मौज ने किस कदर आतंक मचाया है ये पहलीं बार महसूस हो रहा था...। आँखें भीग चुकी थी, दिल मायूसियों ने खंडहर में कहीं दब सा गया था । मैंने उसे उठाया..कोई हलचल नहीं थी... चोंच खुले हुए ढीले पड़ चुके थे... आँखें बंद थी.. । उसे देखते हुए मैं पार्क की तरफ बढा, उसे दोनो हाथों के गोद मे लिए... रास्ते मे मिलने वाले हर बच्चे दिखाते और अपनी ख़ामोश हों रहीं आवाज से उनसे कहते हुए की भगवान के लिए पतंग मत उड़ाओ...देखो इसे... मत उड़ाओ । 😢
जमीन पर रहकर ये महसूस नही कर पाएंगे आप की हवा में उड़ रहा जीव जब जरा सी भी बाधा से टकराता है तो वो आपकी तरह रुकता, सम्भलता और बढ़ता नहीं हैं बल्कि ठीक अगले ही पल वो जमीन की तरफ उसी रफ्तार से गिरता है..। आप जमीन पर होते हैं, आपके पैर पे धागा फस जाएं तो आप रुक कर पूरे वक़्त लेकर उसे निकाल कर फिर अपनी मंजिल की तरफ बढ़ जातें हैं । आसमां में उड़ते परिन्दें के पास इतना वक़्त कहाँ..? वो हवा में रुक नहीं सकता... उसके बाद उसे बस गिरना है... आखिरी बार आसमान को देखते हुए... । 
उस पार्क में उसे दफना कर आ रहा हूँ...उसके शरीर से उस माँझें को निकाल कर जला कर भी । 
आजादी है... खुशियां मनाइए, जरूर मनाइए मगर आजादी की एक छोटी सी शर्त है कि आपकी आजादी वहां खत्म हो जाती हैं जहाँ से वो दूसरों को तकलीफ देने लगे.. । ये बात याद रखिये । पतंग मत उड़ाइये...भगवान के लिए नहीं तो इस बेजुबान के लिए ही सही... 😢😢
- ©PrakashChandra❣️🕊️❣️
#PrakashVaani #Nojoto

शाम 6 बजे का वक़्त, ढलते सूरज की गर्मी और ठंढी हवाओं के बीच हो रही लड़ाइयों का आनंद लेता हुआ मैं पास के एक पार्क की तरफ टहलने का मन बना रहा था । हवा चल रही थी और आजादी का खुमार वातावरण में था । कमरे के बालकनी में एक सफेद कबूतर 🕊️ मेरे रखे गेहूं के दाने को बड़ा ही निडर होकर अपने गले मे भरे जा रहा था..। एक शरारत सूझी... उस कबूतर पर मैंने नील की डिब्बी से कुछ बूंदे छिड़क दिए... । उसकी सफेदी दागदार हो गयी । अब मेरे लिए पहचान पाना आसान हो गया कि ये वही कबूतर है जिसे मैं रोज दाना देता हूँ और जो मुझसे अब बिल्कुल नहीं डरता । बेजुबान जब आपका दोस्त बन जाये तो वो आपकी जुबान बड़ी आसानी से समझ लेता है । उसे दोस्ती के कुछ दिनों बाद ही इंसानी सोच से ऊपर इतनी समझ आ गयी थी कि उसे कब अपनी गुटर गू से मुझे disturb करना है और कब नहीं । तो ये हरकत करने के बाद, अपने बेजुबान दोस्त को एक पहचान देने के बाद मैं पार्क की तरफ निकला..। कान में ईरफ़ोन ठूसे...कुछ पुराने गजलों के बोल सुनते । अचानक पार्क पहुचने से करीब 100 मीटर पहले...आजाद देश के उस बीच सड़क पर... अचानक आसमां से कुछ गिरा... धब्ब सा...ठीक मेरे से 2 कदम आगे । डर गया मैं... पहले तो लगा जैसे किसी ने छत से कचरा फेंका होगा आजाद देश के आजाद नागरिक की तरह..। मगर... देखा... कोई और नही...मेरा बेजुबां दोस्त था वो... वही सफेद कबूतर..जिसको नीले रंगों की पहचान दी थी मैंने..। पतंग उड़ाने वाले धागों में उलझा हुआ... रगड़ से कटे हुए डैनों से निकलता खून,...पंख बेतहास छितराये हुए सड़क पर गिर कर आंखें हमेशा के लिए बन्द कर चुका था वो... । रफ्तार से उड़ता हुआ शायद किसी के मांझे से टकराया था वो... । एक पंख उड़ान की गति की वजह से रगड़ खा कर आधे से ज्यादा चीरे जा चुके थे । बदहवास गिरते वक़्त भी अपने जख्मी पंखों को एक आखिरी बार फड़फड़ा कर खुद को फिर से उड़ा पाने की नाकाम कोशिश की थी उसने शायद, ये उसके शरीर मे जंजीर की तरह लिपटे मांझे बता रहें थे । इंसानी शौक और मौज ने किस कदर आतंक मचाया है ये पहलीं बार महसूस हो रहा था...। आँखें भीग चुकी थी, दिल मायूसियों ने खंडहर में कहीं दब सा गया था । मैंने उसे उठाया..कोई हलचल नहीं थी... चोंच खुले हुए ढीले पड़ चुके थे... आँखें बंद थी.. । उसे देखते हुए मैं पार्क की तरफ बढा, उसे दोनो हाथों के गोद मे लिए... रास्ते मे मिलने वाले हर बच्चे दिखाते और अपनी ख़ामोश हों रहीं आवाज से उनसे कहते हुए की भगवान के लिए पतंग मत उड़ाओ...देखो इसे... मत उड़ाओ । 😢 जमीन पर रहकर ये महसूस नही कर पाएंगे आप की हवा में उड़ रहा जीव जब जरा सी भी बाधा से टकराता है तो वो आपकी तरह रुकता, सम्भलता और बढ़ता नहीं हैं बल्कि ठीक अगले ही पल वो जमीन की तरफ उसी रफ्तार से गिरता है..। आप जमीन पर होते हैं, आपके पैर पे धागा फस जाएं तो आप रुक कर पूरे वक़्त लेकर उसे निकाल कर फिर अपनी मंजिल की तरफ बढ़ जातें हैं । आसमां में उड़ते परिन्दें के पास इतना वक़्त कहाँ..? वो हवा में रुक नहीं सकता... उसके बाद उसे बस गिरना है... आखिरी बार आसमान को देखते हुए... । उस पार्क में उसे दफना कर आ रहा हूँ...उसके शरीर से उस माँझें को निकाल कर जला कर भी । आजादी है... खुशियां मनाइए, जरूर मनाइए मगर आजादी की एक छोटी सी शर्त है कि आपकी आजादी वहां खत्म हो जाती हैं जहाँ से वो दूसरों को तकलीफ देने लगे.. । ये बात याद रखिये । पतंग मत उड़ाइये...भगवान के लिए नहीं तो इस बेजुबान के लिए ही सही... 😢😢 - ©PrakashChandra❣️🕊️❣️ #prakashvaani #