कोरा काग़ज़ लघुकथा (सब बदल गया) आज फिर वही झगड़ा शुरू हो गया सीमा और सुरेश के बीच। दोनों ही एक दूसरे को अपनी वर्तमान परिस्थितियों के लिए दोष दे रहे थे। दोनों ही अपनी-अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ एक दूसरे को उनकी जिम्मेदारियों पर ज्ञान दे रहे थे। जब दोनों ही अपना ज्ञान समाप्त कर थक चुके तो सुरेश अपने दोस्त पुष्कर के घर चला गया। आज फिर वही झगड़ा शुरू हो गया सीमा और सुरेश के बीच। दोनों ही एक दूसरे को अपनी वर्तमान परिस्थितियों के लिए दोष दे रहे थे। दोनों ही अपनी-अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ एक दूसरे को उनकी जिम्मेदारियों पर ज्ञान दे रहे थे। जब दोनों ही अपना ज्ञान समाप्त कर थक चुके तो सुरेश अपने दोस्त पुष्कर के घर चला गया। सत्तर वर्षीय सुरेश अपनी बासठ वर्षीय पत्नी सीमा के साथ अपने बेटे और बहू के साथ उनके घर रहने के लिए आ गए थे। उनका बेटा तन्मय उन दोनों के आने से बहुत ही खुश था। उसके बच्चों को इतने सालों बाद अपने दादा-दादी का प्यार मिल रहा था। शुरू शुरू में तो सब कुछ ठीक था। सुरेश खुद को एक नए माहौल में ढालने की कोशिश कर रहे थे। उनकी पत्नी सीमा तो खुद को उस नए माहौल में ढाल चुकी थी लेकिन एक अधिकारी के पद पर से रिटायर सुरेश को एडजस्ट करने में काफी मुश्किल हो रही थीं। उन्हें अपने आस-पास हर चीज बिल्कुल सही तरीके से देखने की आदत थी जबकि यहाँ पर ज्यादातर सब चीजें बिखरी हुई रहती। सारा सामान इधर उधर रहता। एक समान ढूंढने में ही एक घंटा लग जाता था। वो आएदिन इस बात को लेकर अपनी बहू पर गुस्सा करते रहते।