के नहीं थे हम अपने ही होश में
पा रहे थे तुम्हे तुम्हारे आगोश में
खामोशियां घुल सी रही थी सर्द रात में
धड़कने दिलों की हो गई थीं जो तीव्र तब.... कुछ तो था तुम्हारे उस साथ में
मौन तुम भी रहे मौन हम भी रहे....सिर्फ चुंबनों से बात की रात भर
एक दूजे से यूं हम लिपटे रहे....जैसे पूर्णिमा पे चांद-चांदनी रात भर
यूं खुद को खोते रहे...और तुमको पाते रहे
....... जैसे प्रेम की जीत का जश्न मनाते रहे #Poetry