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मेरे आंगन में धूप किश्तों में आती है... धीरे धीरे,

मेरे आंगन में धूप किश्तों में आती है...
धीरे धीरे, अलसा के कोना कोना भर जाती है।
सिमट के नही रहती किसी एक ठौर...
आसमा के टुकड़ों को छत से छान कर,
 बित्ता बित्ता भीन जाती है। जाड़े की धूप
मेरे आंगन में धूप किश्तों में आती है...
धीरे धीरे, अलसा के कोना कोना भर जाती है।
सिमट के नही रहती किसी एक ठौर...
आसमा के टुकड़ों को छत से छान कर,
 बित्ता बित्ता भीन जाती है। जाड़े की धूप

जाड़े की धूप