चाँद, तारों की यहाँ किसे है ख्वाहिश, दो वक्त की रोटियां मिल जाए वो काफी है। साहब का कोट तो हर घण्टे बदल जाता है, गरीब को फटा-पुराना मिल जाए वो काफी है।।