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White यूँ आई मैं जीवन मे,r मानो आई हो बहार वीराने

White यूँ आई मैं जीवन मे,r
मानो आई हो बहार वीराने जंगल मे।
जहाँ पतझड़ का आलम था,
सूखे पत्तों का चरमराता जंगल था।
हिम्मत न हारी मैंने,
बीना सूखे पत्तों को 
और बना डाली उनकी चटनी।
परंतु इतने से क्या होना था,
ढूंढा फिर कुछ मुरझाते फूलों को,
और डाली उन पर कुछ प्रेम की धार,
और मिला डाले मसाले अपनी हंसी के,
फिर तो बना ये कुछ ऐसा अचार।
ला तो ली थी उसने कमाकर अपनी सुखी रोटी,
परंतु ना कहीं छांव थी,
ना ही आसान सी राह थी।
मैंने फिर कुछ आंचल
फैला दिया तपती जमीं पर,
कुछ चुनरी दी तान उसके सिर पर,
मेरी आंखों की ज्योति ने फिर,
उस रोटी मे भी मानो फूंके हो प्राण।।
इतने मे मेरे बोए बीजों ने ले ली करवट,
बढ़ चले सरपट, बन गए वटवृक्ष।।
आज उस वीराने जंगल मे छाई है बहार,,
डाल_डाल पर कोयल रही कूक,
पपीहा गाए मल्हार,,
खुली आंखों के सपनो ने ले लिया
प्रकृति का, प्रेम का आकार,,
हृदय से गूंज रहा, 
जीवन तेरा आभार, तेरा आभार।
🌹🙏☺️💖

©Diwani Divya
   #मोटिवेशनल कविता इन हिंदी
चरमराता जंगल
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Diwani Divya

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मोटिवेशनल कविता इन हिंदी चरमराता जंगल

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