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writing#Mylove तुम्हें मालूम है मेरे लिखने की वजह.

 writing#Mylove
तुम्हें मालूम है मेरे लिखने की वजह...? कैसे मैं लिख लेती हूँ..? कैसे एक-एक कतरे को शब्दों में पिरो कर बेवक्त एक ही रात डायरी के बेजान पन्नो में बिखेर देती हूँ.. क्योंकि इस डायरी के सिवा मुझे सुनता ही कौन है..? समझता ही कौन है..? पता है.... जब आंसू सूख जाते हैं और भीतर की बारिश थमती नहीं..तो जो आग है न सीने में छुपी हुई तब तक एहसासों को आंसू के साथ पिघलाती है..जब तक कि वो अल्फ़ाज़ न बन जाए.. और ये जो मेरी फ़िज़ूल की बातें हैं न...!! कभी फुरसत से कुरेद कर देखना.. इनमें तुम्हारे लिए ही प्यार है  कुछ खामोश से सवाल और किसी कोने में मैं भी मिल जाऊँगी तुम्हें अधूरी सी । पर खुद को पूरा करने की चाह में । कभी फुरसत मिले तो मेरे अल्फाज़ों को कुरेद कर जरूर देखना ।इन अल्फाजो की भी रूह है । कभी जिस्म से आगे बढ कर देखना।
 writing#Mylove
तुम्हें मालूम है मेरे लिखने की वजह...? कैसे मैं लिख लेती हूँ..? कैसे एक-एक कतरे को शब्दों में पिरो कर बेवक्त एक ही रात डायरी के बेजान पन्नो में बिखेर देती हूँ.. क्योंकि इस डायरी के सिवा मुझे सुनता ही कौन है..? समझता ही कौन है..? पता है.... जब आंसू सूख जाते हैं और भीतर की बारिश थमती नहीं..तो जो आग है न सीने में छुपी हुई तब तक एहसासों को आंसू के साथ पिघलाती है..जब तक कि वो अल्फ़ाज़ न बन जाए.. और ये जो मेरी फ़िज़ूल की बातें हैं न...!! कभी फुरसत से कुरेद कर देखना.. इनमें तुम्हारे लिए ही प्यार है  कुछ खामोश से सवाल और किसी कोने में मैं भी मिल जाऊँगी तुम्हें अधूरी सी । पर खुद को पूरा करने की चाह में । कभी फुरसत मिले तो मेरे अल्फाज़ों को कुरेद कर जरूर देखना ।इन अल्फाजो की भी रूह है । कभी जिस्म से आगे बढ कर देखना।

writingMylove तुम्हें मालूम है मेरे लिखने की वजह...? कैसे मैं लिख लेती हूँ..? कैसे एक-एक कतरे को शब्दों में पिरो कर बेवक्त एक ही रात डायरी के बेजान पन्नो में बिखेर देती हूँ.. क्योंकि इस डायरी के सिवा मुझे सुनता ही कौन है..? समझता ही कौन है..? पता है.... जब आंसू सूख जाते हैं और भीतर की बारिश थमती नहीं..तो जो आग है न सीने में छुपी हुई तब तक एहसासों को आंसू के साथ पिघलाती है..जब तक कि वो अल्फ़ाज़ न बन जाए.. और ये जो मेरी फ़िज़ूल की बातें हैं न...!! कभी फुरसत से कुरेद कर देखना.. इनमें तुम्हारे लिए ही प्यार है कुछ खामोश से सवाल और किसी कोने में मैं भी मिल जाऊँगी तुम्हें अधूरी सी । पर खुद को पूरा करने की चाह में । कभी फुरसत मिले तो मेरे अल्फाज़ों को कुरेद कर जरूर देखना ।इन अल्फाजो की भी रूह है । कभी जिस्म से आगे बढ कर देखना। #Books

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