*वर्षा* कभी बादलों से बरसता था पानी आजकल नयनों से बरसने लगा है नजारों में मातम है पसरा हुआ रुदन भी हृदय में सिमटने लगा है छाया है महामारी का कहर यूँ इंसां तड़प कर मरने लगा है!! लाशें भी लावारिस सी पड़ीं हैं श्मशान भी अब बिकने लगा है!! कहर वो ढाया है कोरोना ने हर घर में कोई तो मरने लगा है मानवता हृदय से नदारद हुई अब चंद रुपयों में इंसान बिकने लगा है मुस्कान लवों पर अब दिखती नहीं है आँखों से मगर जल बरसने लगा है आँखों से मगर जल बरसने लगा है!! ©RhymeShine #baarish