अच्छे को बुरा और बुरे को अच्छा नहीं कहते, हम इश्क़ को बेवफा नहीं कहते, ग़ज़ल कितनी भी पुरानी हो, हम उसे बूढा नहीं कहते और मजहब के नाम पर जंग छिड़नी हो छिड़ जाये, हम शायर हैं साहेब हिंदी और उर्दू दोनो को माँ कहते हैं भाषा नहीं कहते और हिंदी ने ना हिन्दू कहा है खुद को न उर्दू ने मुस्लमान हम दोनों को एक ही कहते है जुदा नहीं कहते....... हिंदी और उर्दू को जुदा नहीं कहते.....