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शीशे से ख़्वाब मेरे, आख़िर क्यूँ चकनाचूर हो गए। क्या

शीशे से ख़्वाब मेरे, आख़िर क्यूँ चकनाचूर हो गए।
क्या ख़ता की थी हमने, जो एक दूजे से दूर हो गए।

हम दोनों थे हमराही, फिर हमसफ़र क्यूँ न बन पाए।
एक दूजे से बिछड़ने को, आखिर क्यूँ मजबूर हो गए।

एक राह चुनी थी दोनों ने, सपनों का जहाँ बसाने की।
मंज़िल भी दोनों की एक थी, फिर कैसे दूर हो गए।

हम दोनों कितने खुश थे, ख़ुशियों के रंग में रंगे थे।
जाने किसकी नज़र लगी, कि सारे रंग बेनूर हो गए।

किस्मत को शायद मंज़ूर न था, हम दोनों का मिलना।
ऐसा भी क्या था जो मिलने बिछड़ने के दस्तूर हो गए। #शीशा_शब्द
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#शब्द_अनकहे_एहसास  #अनकहे एहसास
#अल्फ़ाज़_ए_साहिल #lovequotes

Time period :24hours
शीशे से ख़्वाब मेरे, आख़िर क्यूँ चकनाचूर हो गए।
क्या ख़ता की थी हमने, जो एक दूजे से दूर हो गए।

हम दोनों थे हमराही, फिर हमसफ़र क्यूँ न बन पाए।
एक दूजे से बिछड़ने को, आखिर क्यूँ मजबूर हो गए।

एक राह चुनी थी दोनों ने, सपनों का जहाँ बसाने की।
मंज़िल भी दोनों की एक थी, फिर कैसे दूर हो गए।

हम दोनों कितने खुश थे, ख़ुशियों के रंग में रंगे थे।
जाने किसकी नज़र लगी, कि सारे रंग बेनूर हो गए।

किस्मत को शायद मंज़ूर न था, हम दोनों का मिलना।
ऐसा भी क्या था जो मिलने बिछड़ने के दस्तूर हो गए। #शीशा_शब्द
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