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क्यूँ कोई नहि समझता यहाँ अमीर फ़ेकता है रोटी के टू

क्यूँ कोई नहि समझता
यहाँ अमीर फ़ेकता है रोटी के टूकड़े,और ग़रीब एक-एक दाने को तरसता है 
ये इंडिया है साहब यहाँ ऐसा ही होता है 
क्यूँ कोई नहि समझता
यहाँ हाइली एजुकेटेड अनपडड् फेंकते है सड़कों पर कचरे,और एक बिन पढ़ा लिखा हुआ उसी कचरे को बीनता है 
ये इंडिया है साहब यहाँ ऐसा ही होता है 
क्यूँ कोई नहि समझता
दे आते है मूह माँगी क़ीमत ऊँची दूकनो पे ,पर देना पड़े ग़रीब को तो मोल भाव करते है

क्यूँ कोई नहि समझता यहाँ अमीर फ़ेकता है रोटी के टूकड़े,और ग़रीब एक-एक दाने को तरसता है ये इंडिया है साहब यहाँ ऐसा ही होता है क्यूँ कोई नहि समझता यहाँ हाइली एजुकेटेड अनपडड् फेंकते है सड़कों पर कचरे,और एक बिन पढ़ा लिखा हुआ उसी कचरे को बीनता है ये इंडिया है साहब यहाँ ऐसा ही होता है क्यूँ कोई नहि समझता दे आते है मूह माँगी क़ीमत ऊँची दूकनो पे ,पर देना पड़े ग़रीब को तो मोल भाव करते है

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