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भावनाएं ... खुद के घर पर भी, बेघर सी होती हैं। उमड

भावनाएं ...
खुद के घर पर भी,
बेघर सी होती हैं।
उमड़ती हैं,
मगर..
छले जाने का खौफ,
उन्हें अपने ही घर के,
किसी कोने में कहीं,
जैसे दबा सा देता है।
उनकी सादगी,
और सरलता,
बनावटी दुनिया की,
बनावटी संवेदनाओं से कभी,
मेल नहीं खा पाती।

भावनाओं का..
अपने ही घर पर,
दम घुटता जैसे।
फिर परिस्थितियों के हाथ,
मानो दबा देते हैं,
उनका गला।
और जीते - जी,
मर जाती हैं,
भावनाएं।

 फिर...
उमड़ने का साहस,
कभी नहीं कर पाती हैं।
अंदर किसी कोने में,
मानो जिंदा लाश की तरह,
बस घुटन भरी सांसे ही,
उनकी नियति बन जाती हैं।
और खुद के घर पर ही,
बेघर सी हो जाती है।


#कुन्दन_कृति good morning

#steps
भावनाएं ...
खुद के घर पर भी,
बेघर सी होती हैं।
उमड़ती हैं,
मगर..
छले जाने का खौफ,
उन्हें अपने ही घर के,
किसी कोने में कहीं,
जैसे दबा सा देता है।
उनकी सादगी,
और सरलता,
बनावटी दुनिया की,
बनावटी संवेदनाओं से कभी,
मेल नहीं खा पाती।

भावनाओं का..
अपने ही घर पर,
दम घुटता जैसे।
फिर परिस्थितियों के हाथ,
मानो दबा देते हैं,
उनका गला।
और जीते - जी,
मर जाती हैं,
भावनाएं।

 फिर...
उमड़ने का साहस,
कभी नहीं कर पाती हैं।
अंदर किसी कोने में,
मानो जिंदा लाश की तरह,
बस घुटन भरी सांसे ही,
उनकी नियति बन जाती हैं।
और खुद के घर पर ही,
बेघर सी हो जाती है।


#कुन्दन_कृति good morning

#steps