यूँ तो ज़िन्दगी की सभी उलझनों से पार पाया है। कम्बख्त इस 'काश' ने लेकिन मुझे बेहद सताया है। यही अफ़सोस अब भी है के तुझको रोक पाता मैं। तो खुद को इस कदर अपने कभी बेबस ना पाता मैं। मगर अब ये हक़ीक़त है कि ऐसा हो नहीं पाया। मेरे हिस्से में पछताने को फ़क़त ये 'काश' आया है। कभी ये सोचता हूँ मैं तेरी ही आरज़ू क्यूँ है। मेरे ख़्वाबों ख्यालों को तूँ क्युँ इतनी जरुरी है। गर ये तब समझ पाता तो तुझसे दूर ना जाता। तेरी ज़ुस्तज़ु में दिल को यूँ तनहा नहीं पाता। एकाकी हो कर तेरे बिन मुझे कुछ भी न भाया है। मेरे हिस्से में पछताने को फ़क़त ये 'काश' आया है। - क्रांति #काश #क्रांति