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वो नाजुक सी बच्ची थी, जान थी, अनजान थी..... एक म

वो नाजुक सी बच्ची थी, 
जान थी, अनजान थी..... 
एक माँ  की दुआ की,  उस खुदा की पहचान थी, 
वो तो  फूल थी,  परी थी, 
एक बचपन की,  मुस्कुराहट  थी, 
पर क्या पता था उसे 
वो इस दुनिया मे,  कुछ पल की मेहमान थी.. 
ना अभी इतनी समझ  उसे हो पायी थी, 
की अपनों के द्वारा ही, वो कुचल दी जयेगी, 
उसके नाजुक से शरीर को जिन्दा लाश क्यू बना दिया, 
वो तो  फूल थी ना यार......फिर उसे क्यू मिटा दिया 
तो फिर किस हैवानियत की नजर उसमे लगी थी, 
जो वो जान,  इस कदर बेजान पड़ी थी..... # नम आँखों से 
मेरी कविता की कुछ पंक्तिया. जो मुझे और इस समाज को मौन और निशब्द करती h...
वो नाजुक सी बच्ची थी, 
जान थी, अनजान थी..... 
एक माँ  की दुआ की,  उस खुदा की पहचान थी, 
वो तो  फूल थी,  परी थी, 
एक बचपन की,  मुस्कुराहट  थी, 
पर क्या पता था उसे 
वो इस दुनिया मे,  कुछ पल की मेहमान थी.. 
ना अभी इतनी समझ  उसे हो पायी थी, 
की अपनों के द्वारा ही, वो कुचल दी जयेगी, 
उसके नाजुक से शरीर को जिन्दा लाश क्यू बना दिया, 
वो तो  फूल थी ना यार......फिर उसे क्यू मिटा दिया 
तो फिर किस हैवानियत की नजर उसमे लगी थी, 
जो वो जान,  इस कदर बेजान पड़ी थी..... # नम आँखों से 
मेरी कविता की कुछ पंक्तिया. जो मुझे और इस समाज को मौन और निशब्द करती h...
pooja1464341979013

pooja negi#

New Creator

# नम आँखों से मेरी कविता की कुछ पंक्तिया. जो मुझे और इस समाज को मौन और निशब्द करती h...