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कंधों पर तुम्हारे सर रख कर कुछ कहना बाकी है तुम्हा

 कंधों पर तुम्हारे सर रख कर कुछ कहना बाकी है
तुम्हारी यादों के साये में लिखी नज़्म सुनाना बाकी है

लौट आओ कि ज़रूरत बेइंतेहा तुमसे निस्बत की है
फुरक़त में गुज़रे हुए वक़्त का हिसाब देना बाकी है
निस्बत-साथ देना
फुरक़त- जुदाई
www.ibadat-e-lafz.com©
 कंधों पर तुम्हारे सर रख कर कुछ कहना बाकी है
तुम्हारी यादों के साये में लिखी नज़्म सुनाना बाकी है

लौट आओ कि ज़रूरत बेइंतेहा तुमसे निस्बत की है
फुरक़त में गुज़रे हुए वक़्त का हिसाब देना बाकी है
निस्बत-साथ देना
फुरक़त- जुदाई
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कंधों पर तुम्हारे सर रख कर कुछ कहना बाकी है तुम्हारी यादों के साये में लिखी नज़्म सुनाना बाकी है लौट आओ कि ज़रूरत बेइंतेहा तुमसे निस्बत की है फुरक़त में गुज़रे हुए वक़्त का हिसाब देना बाकी है निस्बत-साथ देना फुरक़त- जुदाई www.ibadat-e-lafz.com© #Poetry