Nojoto: Largest Storytelling Platform

ग़ज़ल वो किसी ग़ैर की ग़ज़ल होगी

               ग़ज़ल 
वो किसी ग़ैर की ग़ज़ल होगी 
जिसे मैं होठों से लगाना चाहता हूँ ।
वो बड़ी मेहनत से सँवारा होगा 
जिसे तहे दिल से मैं गुनगुनाना चाहता हूँ ।
यूँ तो ग़ज़ल सैकड़ो हैं इस जहां में मग़र 
कोई एक ही ग़ज़ल मैं चूमना चाहता हूँ ।
मुखरा जो लौट के आये सुबहोशाम 
बस उसी का चेहरा मैं देखना चाहता हूँ ।
ग़ज़ल भी जलवा बिखराती है ऐन वक़्त 
जब उस मोड़ से मैं मुड़ जाना चाहता हूँ ।
कभी चाँद से मेरी बिंदी फिसल जाती है 
कभी ठुड्डी का काला नुक्ता संभालता हूँ ।
तेरे हुस्न की क्या तारीफ़ करूँ ,ऐ ग़ज़ल 
अब क्या-क्या न मैं मिसाल ढूँढता हूँ ।
कभी काँटों भरी गुलाब में कभी अनजाने नकाब में 
तेरे चेहरे का इक ख़्वाब देखता हूँ ।
               ग़ज़ल 
वो किसी ग़ैर की ग़ज़ल होगी 
जिसे मैं होठों से लगाना चाहता हूँ ।
वो बड़ी मेहनत से सँवारा होगा 
जिसे तहे दिल से मैं गुनगुनाना चाहता हूँ ।
यूँ तो ग़ज़ल सैकड़ो हैं इस जहां में मग़र 
कोई एक ही ग़ज़ल मैं चूमना चाहता हूँ ।
मुखरा जो लौट के आये सुबहोशाम 
बस उसी का चेहरा मैं देखना चाहता हूँ ।
ग़ज़ल भी जलवा बिखराती है ऐन वक़्त 
जब उस मोड़ से मैं मुड़ जाना चाहता हूँ ।
कभी चाँद से मेरी बिंदी फिसल जाती है 
कभी ठुड्डी का काला नुक्ता संभालता हूँ ।
तेरे हुस्न की क्या तारीफ़ करूँ ,ऐ ग़ज़ल 
अब क्या-क्या न मैं मिसाल ढूँढता हूँ ।
कभी काँटों भरी गुलाब में कभी अनजाने नकाब में 
तेरे चेहरे का इक ख़्वाब देखता हूँ ।