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हूँ कमाता बाप से अपने ज़ियादा मैं कही ज़िन्दगी खुद क

हूँ कमाता बाप से अपने ज़ियादा मैं कही
ज़िन्दगी खुद की चलाता
भेजता कुछ घर नही
पर मेरा खर्चा कभी मुझको नही पूरा हुआ
उड़ गई तनख्वाह पर दिन बीस न पूरा हुआ

क्यों नही बदली महीनों माँ ने अपनी चूड़ियाँ
अब समझता हूँ मैं अपने बाप की मजबूरिया

क्रमशः


love and follow for full poem #pita
 #father #fathersday #hindi
हूँ कमाता बाप से अपने ज़ियादा मैं कही
ज़िन्दगी खुद की चलाता
भेजता कुछ घर नही
पर मेरा खर्चा कभी मुझको नही पूरा हुआ
उड़ गई तनख्वाह पर दिन बीस न पूरा हुआ

क्यों नही बदली महीनों माँ ने अपनी चूड़ियाँ
अब समझता हूँ मैं अपने बाप की मजबूरिया

क्रमशः


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