प्रगति पथ की इस अंधी दौड़ में, जाने कितनी सांसें छीन चुके हैं, ज़िंदगी देने वाली अनमोल प्रकृति , के ही तो दुश्मन बन चुके हैं, बच सकेंगें तभी ही इन आपदाओं से , जब हर ज़िंदगी को प्रकृति की गोद में पनपने देंगें.... प्रकृति ही जीवन हमारा।