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कितने राज़ ज़ेहन में छुपा कर रखती थी अब अल्फाज़ो म

 कितने  राज़ ज़ेहन में छुपा कर रखती थी 
अब अल्फाज़ो में धीरे धीरे हो मैं फाश गयी हूँ,

अपनी यादों में मेरा नाम लेता होगा वो की
मैं अब बन उसके गले की खराश गयी हूँ,

तारो की बरात में चांद ढूंढ़ता है वो मैं बन 
अब उसकी एक बेमतलब की तलाश गयी हूँ,

कितनी शिद्दत से इंतज़ार करता है मेरा
मैं उसकी ख्वाईशो का बन वो काश गयी हूँ,

मेरे लिए कोई तुर्बत ले आओ कही से
सांस है मगर सांस नही मैं बन वो लाश गयी हूँ,

न ग़ालिब न गुलज़ार किसी किताब का
मैं अपनी कहानियो का बन पाश गयी हूँ,,







 aman6.1
 कितने  राज़ ज़ेहन में छुपा कर रखती थी 
अब अल्फाज़ो में धीरे धीरे हो मैं फाश गयी हूँ,

अपनी यादों में मेरा नाम लेता होगा वो की
मैं अब बन उसके गले की खराश गयी हूँ,

तारो की बरात में चांद ढूंढ़ता है वो मैं बन 
अब उसकी एक बेमतलब की तलाश गयी हूँ,

कितनी शिद्दत से इंतज़ार करता है मेरा
मैं उसकी ख्वाईशो का बन वो काश गयी हूँ,

मेरे लिए कोई तुर्बत ले आओ कही से
सांस है मगर सांस नही मैं बन वो लाश गयी हूँ,

न ग़ालिब न गुलज़ार किसी किताब का
मैं अपनी कहानियो का बन पाश गयी हूँ,,







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