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एक मौसम था कि दिन रात बरसता था आंखों से । अब ये

एक  मौसम  था  कि दिन रात बरसता था आंखों से ।
अब ये लम्हा है कि एक बूंद नहीं गिरता है आंखों से ।

सब  झुक  जाते  हैं  अपनी ही  दास्तां  में  एक दिन ।
पर  इतना  कहां  गिरता   है  कोई   इन    आंखों से ।

तुम्हारें   लब्ज   को   अपनी  जुबां   बना के देखा तो ,
मै   नजरे    नहीं   मिला    पाया  तुम्हारी  आंखों  से । #nojoto
#abhishek
#najare
एक  मौसम  था  कि दिन रात बरसता था आंखों से ।
अब ये लम्हा है कि एक बूंद नहीं गिरता है आंखों से ।

सब  झुक  जाते  हैं  अपनी ही  दास्तां  में  एक दिन ।
पर  इतना  कहां  गिरता   है  कोई   इन    आंखों से ।

तुम्हारें   लब्ज   को   अपनी  जुबां   बना के देखा तो ,
मै   नजरे    नहीं   मिला    पाया  तुम्हारी  आंखों  से । #nojoto
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