कलम रुक जाती हैं अक्सर सादे पन्ने के इंतजार में आज जो ख़बर धुएँ में है वो थीं कभी अखबार में अब इजाज़त दिल की नहीं मिलती बसर मुश्किल हुआ ऐतबार में टूट जाती हैं चीजें बहुत ऐहतियात बरतना पड़ रहा घर- बार में खो गया मैं भी था किसी से मिल कर ऐसे एक बार हमने भी दिल हारा प्यार में चौखट आखों पर जमी रहती थी हमने वीराने से पल गुज़ारे है गुलशन - गुलज़ार में एक फ़कीर मस्तमौला अमीर बना मैं कुछ नहीं खरीद सका मोहब्बत के बाजर में .... सलोनी कुमारी ©khubsurat #drowning