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1. बैसनो सो जिस ऊपर सुप्रसन बिसन की माया ते होये भ

1. बैसनो सो जिस ऊपर सुप्रसन बिसन की माया ते होये भिन्न।। काहू फल की इच्छा नहीं बाचै केवल भगत कीर्तन सँग राच्य।। 2. तीर्थ बरत अर दान कर मन में धरे गुमान।। नानक नेहफल जात तह जेओ कुंचर ईषनान।। 3. तज मान मोह विकार मिथिआ जप राम राम राम।।

अर्थ:- गुरु साहिब जी फ़रमान कर रहे हैं कि अगर जो मास नहीं खाता वह शरीरिक वैष्णो हुआ पर असल वैष्णव वह है जिस पर खुद परमात्मा प्रसन्न हो जाये और जो सब से बड़ी विष्णु भगवान की माया यानी सतोगुण से भी खुद को अलग कर ले यानी पाठ पूजा, दान पुण्य, व्रत, तीर्थ:-भृमण, ईषनान आदि से खुद को अलग करके सिर्फ मन को हरिनाम में जोड़े। अगर कोई पाठ दान पुण्य करता है तो यह न कहे मन में की मैने किया है और मुझे अब इसके बदले में वडिआई फल स्वरूप मिलेगी तो ऐसे फल की मन इच्छा न करे यानी आसक्ति न करे पर भगत केवल हरिसंतो द्वारा की परमात्मा की कीर्ति यानी नाम का कथन व हरिकथा में मन लगाए।।2. तीर्थ यात्राएं व तीर्थ ईषनान व तीर्थ स्थान पर जाना व्रत व दान पुण्य करके मन सोचे कि आहा! मैंने तोह बहुत पुण्य कमा लिया! बड़ी सेवा कर ली, यानी मन में अभी भी मैं है गुमान है तो गुरु जी कहते हे नानक यह सब करना वेस्ट है जैसे हाथी नहाने के बाद बदन पर मिट्टी डाल लेता है तो उसका नहाना वेस्ट हो जाता है।।3. गुरु जी कहते कि मन के मान मोह और मन के विकार छोड़ो और राम नाम का कथन यानी हरिकथा को मन सुने जिसमें हरिनाम का हरिसंतो द्वारा कथन हो अकथ कथा में।।

©Biikrmjet Sing #असल_वैष्णव
1. बैसनो सो जिस ऊपर सुप्रसन बिसन की माया ते होये भिन्न।। काहू फल की इच्छा नहीं बाचै केवल भगत कीर्तन सँग राच्य।। 2. तीर्थ बरत अर दान कर मन में धरे गुमान।। नानक नेहफल जात तह जेओ कुंचर ईषनान।। 3. तज मान मोह विकार मिथिआ जप राम राम राम।।

अर्थ:- गुरु साहिब जी फ़रमान कर रहे हैं कि अगर जो मास नहीं खाता वह शरीरिक वैष्णो हुआ पर असल वैष्णव वह है जिस पर खुद परमात्मा प्रसन्न हो जाये और जो सब से बड़ी विष्णु भगवान की माया यानी सतोगुण से भी खुद को अलग कर ले यानी पाठ पूजा, दान पुण्य, व्रत, तीर्थ:-भृमण, ईषनान आदि से खुद को अलग करके सिर्फ मन को हरिनाम में जोड़े। अगर कोई पाठ दान पुण्य करता है तो यह न कहे मन में की मैने किया है और मुझे अब इसके बदले में वडिआई फल स्वरूप मिलेगी तो ऐसे फल की मन इच्छा न करे यानी आसक्ति न करे पर भगत केवल हरिसंतो द्वारा की परमात्मा की कीर्ति यानी नाम का कथन व हरिकथा में मन लगाए।।2. तीर्थ यात्राएं व तीर्थ ईषनान व तीर्थ स्थान पर जाना व्रत व दान पुण्य करके मन सोचे कि आहा! मैंने तोह बहुत पुण्य कमा लिया! बड़ी सेवा कर ली, यानी मन में अभी भी मैं है गुमान है तो गुरु जी कहते हे नानक यह सब करना वेस्ट है जैसे हाथी नहाने के बाद बदन पर मिट्टी डाल लेता है तो उसका नहाना वेस्ट हो जाता है।।3. गुरु जी कहते कि मन के मान मोह और मन के विकार छोड़ो और राम नाम का कथन यानी हरिकथा को मन सुने जिसमें हरिनाम का हरिसंतो द्वारा कथन हो अकथ कथा में।।

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